सोमवार, 8 नवंबर 2021

*कामनाशून्य अहेतुकी भक्ति*

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*तन मन लै लागा रहै, राता सिरजनहार ।*
*दादू कुछ मांगैं नहीं, ते बिरला संसार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निष्काम पतिव्रता का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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(मास्टर से) “हाजरा कहता है, ब्राह्मण का शरीर धारण किये बिना मुक्ति नहीं होती । मैंने कहा, यह कैसी बात ! भक्ति से ही मुक्ति होती है । शबरी व्याघ की लड़की थी, रैदास - जिसके भोजन के समय घण्टा बजता था - ये सब शुद्र थे । इनकी मुक्ति भक्ति से ही हुई है । हाजरा इसमे 'परन्तु' जोड़ता है ।
"ध्रुव को लेता है । प्रह्लाद को जितना लेता है, उतना ध्रुव को नहीं । लाटू ने कहा बचपन से ही परमात्मा पर ध्रुव का अनुराग था, तब वह चुप हुआ ।
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“मैं कहता हूँ, कामनाशून्य अहेतुकी भक्ति होनी चाहिए । इससे अधिक और कुछ भी नहीं है, हाजरा को यह बात मान्य नहीं हुई । याचक के आने पर धनी व्यक्ति बहुत नाराज होता है । विरक्ति से कहता है - ओफ, आ रहा है । आने पर एक खास तरह की आवाज में कहता है - 'बैठिये’ । मानो अत्यधिक नाराज हो । ऐसे लोगों को वह अपने साथ गाड़ी पर नहीं बैठाता ।
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“हाजरा कहता है, वे दूसरे धनिकों की तरह नहीं है उन्हें ऐश्वर्य की क्या कमी है जो देने में उन्हें कष्ट होगा ।
"हाजरा और भी कहता है - 'आकाश का पानी जब गिरता है, तब गंगा और दूसरी बड़ी बड़ी नदियाँ, बड़े बड़े तालाब सब भर जाते हैं और गड़हियाँ भी भर जाती हैं । उनकी कृपा होती है तो वे ज्ञान-भक्ति भी देते हैं और रुपया-पैसा भी देते हैं ।"
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"परन्तु इसे मलिन-भक्ति कहते हैं । शुद्धा-भक्ति वह है, जिसमें कोई कामना नहीं रहती । तुम यहाँ कुछ चाहते नहीं, परन्तु मुझे और मेरी बातों को चाहते और प्यार करते हो । तुम्हारी ओर मेरा भी मन लगा रहता है । कैसे हो, क्यों नहीं आते, यह सब सोचता रहता हूँ ।
“कुछ चाहते नहीं परन्तु प्यार करते हो, इसका नाम अहेतुकी भक्ति है - शुद्धा भक्ति है । यह प्रह्लाद में थी । न वह राज्य चाहता था, न ऐश्वर्य, केवल परमात्मा को चाहता था ।”
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मास्टर - हाजरा महाशय बस यों ही कुछ ऊटपटांग बड़ा करते हैं । देखता हूँ, बिना चुप रहे कुछ होगा नहीं ।
श्रीरामकृष्ण - कभी कभी पास आकर खूब मुलायम हो जाता है, परन्तु दुराग्रही भी ऐसा है कि फिर तर्क करने लगता है । अहंकार का मिटना बड़ा मुश्किल है । बेर का पेड अभी काट डालो, दूसरे दिन फिर पनपेगा और जब तक उसकी जड़ है, तब तक नयी डालियों का निकलना बन्द न होगा ।
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"मैं हाजरा से कहता हूँ, किसी की निन्दा न किया करो । नारायण ही सब रत्न धारण किये हुए हैं । दुष्ट मनुष्यों की भी पूजा की जा सकती है ।
"देखो न कुमारी-पूजन । ऐसी लड़कियों की पूजा की जाती है जो देह में मल-मूत्र लगाये रहती हैं; ऐसा क्यों करते हैं ? इसलिए कि वे भगवती की एक मूर्ति हैं ।
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“भक्त के भीतर वे विशेष रूप से रहते हैं । भक्त ईश्वर का बैठकखाना है ।
"कद्दू खूब बड़ा हो तो उसका तानपूरा बहुत अच्छा होता है - खूब बजता है ।
(हँसते हुए रामलाल से) "क्यो रे रामलाल, हाजरा ने कैसे कहा था - अन्तस् बहिस् यदि हरिस् (सकार लगाकर) ? कैसा किसी ने कहा था - 'मातारं भातारं खातारं" - अर्थात् माँ भात खा रही है ।" (सब हँसते हैं ।)
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रामलाल - (हँसते हुए) - अन्तर्बहिर्यदिहरिस्तपसा ततः किम् ?
श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) - इसका अभ्यास कर लेना । कभी कभी मुझे सुनाना ।
श्रीरामकृष्ण की छोटी थाली खो गयी है । रामलाल और वृन्दा नौकरानी थाली की बात पूछने लगे, 'क्या आप वह थाली जानते हैं ?'
श्रीरामकृष्ण - आजकल तो मैंने उसे नहीं देखा । पहले थी जरूर - मैंने देखी थी ।
(क्रमशः)

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