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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१२७)*
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*१२७. त्रिताल*
*पीव ! हौं कहा करूँ रे,*
*पाइ परूं के प्राण हरूं रे,*
*अब हौं मरणे नांहि डरूं रे ॥टेक॥*
*गाल मरूं कै, जालि मरूं रे,*
*कै हौं करवत शीश धरूं रे ॥१॥*
*खाइ मरूं कै घाइ मरूं रे,*
*कै हौं कतहूँ जाइ मरूं रे ॥२॥
*तलफ मरूं कै झूरी मरूं रे,*
*कै हौं विरही रोइ मरूं रे ॥३॥*
*टेरि कह्या मैं मरण गह्या रे,*
*दादू दुखिया दीन भया रे ॥४॥*
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भा० दी०- हे प्रभो ! किमन्यत्कर्तुं शक्नोमि तवालम्बनं विना । अतश्शरणं गतोऽस्मि । तत्रस्थित: प्राणान् विमोक्ष्यामि अन्यथा दर्शनं देहि नाहं मृत्यो विभेमि । हिमालये शरीरं पातयित्वा शरीरमग्नौ दग्ध्वा शिरः क्रकचेन छित्वा विषं भुक्त्वा शस्त्राघातेन प्राणान् त्यक्ष्यामि । अथवा निर्जने वने प्रायोपवेशादिना विरहिजनवद् विलापं विलापं रोदं रोदं तनुं त्यक्ष्यामि । यदि त्वदर्शनं न भवेत्तदा मृत्युमेष्यामीति प्रतीज्ञातं मया । हा दर्शनं विनाऽतिदीनो दुःखितोऽस्मि ।
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हे प्रभो ! मैं आपके चरण-कमलों की शरण ग्रहण के अलावा और क्या कर सकता हूं । अतः अब मैं आपके चरणों की शरण में आ गया हूं, चरणों में स्थित होकर प्राणों को त्याग दूंगा, नहीं तो दर्शन दीजिये । अब मैं मृत्यु से नहीं डरता, हिमालय में जाकर बर्फ से गल कर मर जाऊंगा ।
जहर खाकर शस्त्रों के प्रहार से प्राण छोड़ दूंगा अथवा निर्जन वन में उपवास आदि करके मर जाऊंगा अथवा विरही जन की तरह रो रो कर विलाप कर-कर के मर जाऊंगा । मैंने यह प्रतिज्ञा कर ली है कि यदि भगवान् के दर्शन नहीं होंगे तो मैं मृत्यु को प्राप्त हो जाऊंगा । मैं आपके दर्शनों के बिना अति दीन, दुःखी हो रहा हूं ।
(क्रमशः)
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