शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

*नीर सिताब हि ल्याय निहारत*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*साधु निर्मल मल नहीं, राम रमै सम भाइ ।*
*दादू अवगुण काढ कर, जीव रसातल जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ निन्दा का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नीर सिताब हि ल्याय निहारत,*
*देख उठी जरि भ्रातहु देखै ।*
*केवल काढ दिई यह साखत,*
*और कर्यो भरता दुख पेखै ॥*
*काल परयो् सु पाले नहिं टाबर,*
*जाय रहूं कहु यूं करि लेखै ।*
*साथ लियें भरतार हि बालक,*
*केवल द्वारि परी सु विशेखै ॥१९४॥*
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शीघ्रता से जल लेकर आई और देखा संत जीम रहे हैं । फिर जल के घड़े रख कर संतों को खीर जीमते देखा तब भाइयों की ओर देखकर वह जल उठी । और बोली गाय खाओ, गाय खाओ तब संतों ने पूछा, माताजी क्या कहती हैं ? केवल - अन्य संत तो जीमते समय गाते गाते खाते हैं, आप भी गाकर खाओ । तब संत श्लोक बोलने लगे । फिर वह चौक में बैठ कर धूलि की अजुँली उठा उठा कर पटकने लगी, तब संतों ने पूछा माताजी क्या कहती हैं । केवल – यह कहती हैं खीर में बूरा कम हो तो और दे दो ।
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केवलजी उठे और बूरा लाकर देने लगे फिर संतों के चले जाने पर केवलजी ने यह अभक्त है ऐसा जानकर कहा –
“संतां आये अनमनी, भाईयाँ आये शूरी ।
केवल कूबा यूं कहै, निकलो घर से पूरी ॥”
घर से निकाल दिया । उसने दूसरा पति बना लिया । पुत्री पुत्र हो गये । बड़ा दुःख पाने लगी ।
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फिर एक समय दुष्काल पड़ गया, अब उससे बाल बच्चों का पालन भी नहीं हो पाता था । फिर उसने सोचा – यदि मैं झींथड़ा में जाकर भक्तजी के पास पड़ जाऊंगी तब तो वे हमारी ऐसी दशा कैसे देख सकेंगे अर्थात् कुछ काम में लगाकर भी हमारा दुष्काल का समय तो निकला ही देंगे ।
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वह अपने पति और बाल बच्चों को लेकर विशेष रूप से अनाथ असहाय की भांति केवलजी के द्वार पर आकर पड़ गई ।
(क्रमशः)

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