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*दादू पावै सुरति सौं, बाणी बाजै ताल ।*
*यहु मन नाचै प्रेम सौं, आगै दीन दयाल ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥ लीलानुकरण भक्ति ॥*
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*॥ लीला देखने में भी नित्य समाधि ॥*
लीला लाख कर भी कभी, नित समाधि हो जाय ।
तुरत विपुल विट्ठल मिले, नित बिहार में आय ॥२००॥
दृष्टांत कथा –विपुल विट्ठलजी स्वामी हरिदासजी के शिष्य के शिष्य थे । निधि बन में रहते थे । हरिदासजी के परम धाम जाने के बाद वे गुरु के वियोग से व्यकुल रहा करते थे । एक दिन हरि भक्तों ने उन्हें भी रास लीला में बुलाया । वे भक्तों की आज्ञा उलंघन नहीं कर सके ।
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रास में वे भगवत् स्वरूप में मग्न हो गये और उसी दशा में उन्हें गुरु हरिदासजी के दर्शन भी हो गये । फिर वे भगवत् स्वरूप में तद्रूप होकर सदा के लिये उसी क्षण नित्य बिहार में जा मिले । इससे सूचित होता है कि हरि लीला देखने से कभी २ नित्य समाधि भी हो जाती है ।
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