शुक्रवार, 10 दिसंबर 2021

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*तन भी तेरा, मन भी तेरा, तेरा पिंड पराण ।*
*सब कुछ तेरा, तूँ है मेरा, यहु दादू का ज्ञान ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥ लीलानुकरण भक्ति ॥*
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*॥ लीला से भक्त को परमानन्द ॥*
लीला लख कर भक्त को, होत परम आनन्द ।
रामराय ने सुता दी, लोक लाज हत फंद ॥२०१॥
दृष्टांत कथा – राजा खेम्हाल के पुत्र रामराय राठौड़ परम भक्त थे । एक समय शरदपूर्णिमा को उन्होंने रास कराया था । रास को देख कर के आनन्द मग्न होकर मन्त्री से बोले – 'भगवत् को क्या भेंट करनी चाहिये ।' मन्त्री – 'जो आपको प्यारी हो वही वस्तु भेंट करनी चाहिये ।' 
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राजा कुछ चुप हो करके बोले – 'मुझे मेरी पुत्री प्यारी है ।' यह कह कर वे महल में चले गये । आभूषणादि से सजा कर पुत्री को ले आये और गान्धर्व विवाह की रीति से श्रीकृष्ण के भेंट कर दिया तथा बहुत धन भी दिया जिससे उसे कोई दुःख नहीं हो सके । इससे सूचित होता है कि लीला से भक्त को परम आनन्द होता है ।

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