शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

शब्दस्कन्ध ~ पद #.१३६

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१३६)*
===============
*१३६. हितोपदेश । त्रिताल*
*जागत को कदे न मूसै कोई ।*
*जागत जान जतन कर राखै,*
*चोर न लागू होई ॥टेक॥*
*सोवत साह वस्तु नहिं पावे,*
*चोर मूसै घर घेरा ।*
*आस पास पहरे को नाहीं,*
*वस्ते कीन नबेरा ॥१॥*
*पीछे कहु क्या जागे होई,*
*वस्तु हाथ तैं जाई ।*
*बीती रैन बहुरि नहिं आवै,*
*तब क्या करि है भाई ॥२॥*
*पहले ही पहरे जे जागै,*
*वस्तु कछू नहिं छीजे ।*
*दादू जुगति जान कर ऐसी,*
*करना है सो कीजे ॥३॥*
.
भा० दी०-सर्वतोभावेन जाग्रत: पुरुषस्य गृहे चौरा न प्रवेष्टुं प्रभवन्ति । तथैव यस्यान्त:- करणं विवेकवैराग्यादिगुणैः समाहितं तत्र न कामादिचौराणां प्रवेश: संभवति । कुतो ज्ञानधनस्य चौर्यं संभवेत् । यस्तु जीवो विवेकादिज्ञानविहीनोऽविद्यानिद्रायां सततं स्वपिति तस्य विवेक-वैराग्यादिधनं कामादयश्चौरा: बलादप हरन्ति । गृहस्वामी तु स्वयं स्वपिति । न चान्यो दिव्यगुणसंपन्न: कामादिचौराणां निषेधक: प्रहरी वर्तते, यचौरान निषेधयेत् । शून्यं गृहं मत्वा स्वामिन: सर्वस्वं कामादय-श्चौरा ज्ञानधनं हरन्ति । आयुष्यञ्च प्रतिक्षणं क्षिणोत्येव । अतो हे तात! पूर्वावस्थायामेव जागृहि । यश्च यौवन एव सावधान: (ज्ञान-संपन्न:) भवति तस्य किमपि तात्विकं वस्तु न क्षीयते । अतो यौवन एव त्वया ज्ञानसंपन्नेन भाव्यम् । यत्कर्तव्यमस्ति तत्सपद्येव तत्करणीयम् ।
उक्तंहि वासिष्ठे -वैराग्य सर्गे
इमान्यमूनीति विभावितानि कार्याण्यपर्यन्तमनोरमाणि ।
जनस्य जायाजनरञ्जनेन जवाज्जरन्तं जरयन्ति चेतः ॥
पर्णानि जीर्णानि यथा तरूणां समेत्य जन्माशुलयं प्रयान्ति ।
तथैव लोकाः स्वविवेकहीना: समेत्य गच्छन्ति कुतोऽष्यहोभिः ॥
.
हर तरह से सावधान रहने वाले के घर में चोर चौरी नहीं कर सकता है, वैसे ही जिसका अन्तःकरण विवेक, वैराग्यादि गुणों से संपन्न होकर एकाग्र हो रहा है, वहां पर कामादि चोरों का प्रवेश भी नहीं हो सकता । फिर ज्ञान-धन को तो चुरा ही कौन सकता है ?
.
जो जीव विवेक-विज्ञान से रहित है तथा अविद्या-निद्रा में सदा सोता ही रहता है, उसके विवेक-वैराग्यादि धन को काम-क्रोधादि चोर जबरदस्ती लूट लेते हैं, क्योंकि घर का मालिक तो अविद्या में सो रहा है और कोई दैवीगुण संपन्न पहरेदार व्यक्ति है नहीं, जो उनका निषेध करे । सूना घर समझ का काम-क्रोधादि शत्रु उसके संपूर्ण ज्ञान-धन को लूट कर ले जाते हैं ।
.
जो यौवन में ही नहीं जाग सका(ज्ञान प्राप्त नहीं कर सका) तो फिर बुढापे में वह कैसे जाग सकेगा ? आयु तो प्रतिदिन क्षीण हो रही है । हे तात ! अतः यौवन में ही ज्ञान प्राप्त करके जागो । जो यौवन में सावध न हो जाता है, उसके घर से कोई भी वस्तु(ज्ञान) नष्ट नहीं होती, अतः युवावस्था में ही ज्ञान संपन्न होकर कर्तव्य कर्मों को करना चाहिये ।
.
योगवासिष्ठ में लिखा है कि –
इनको अभी करना है और उन्हें बाद में, इस प्रकार जिनके लिये चिन्ता की जाती है, वे आपात रमणीय एवं परिणाम में अनर्थरूप सिद्ध होने वाले कर्म, स्त्रियों तथा अन्य लोगों के लिये मनोरंजनपूर्वक किये जाते हुए, वृद्धावस्था के अन्त तक लोगों के चित्त को वेगपूर्वक जीर्ण-शीर्ण(विवेक भ्रष्ट) करते रहते हैं । जैसे वृक्षों के पत्ते उत्पन्न हो कर थोड़े ही दिनों में पीले पड़ कर गिर जाते हैं, इसी प्रकार आत्मविवेक से भ्रष्ट मनुष्य इस लोक में जन्म लेकर एक दूसरे से मिलकर कुछ ही दिनों में साथ छोड़ कर चल देते हैं ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें