रविवार, 5 दिसंबर 2021

शब्दस्कन्ध ~ पद #.१३७

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१३७)*
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*१३७. उपदेश । त्रिताल*
*सजनी ! रजनी घटती जाइ ।*
*पल पल छीजै अवधि दिन आवै,*
*अपनो लाल मनाइ ॥टेक॥*
*अति गति नींद कहा सुख सोवै,*
*यहु अवसर चलि जाइ ।*
*यहु तन विछुरैं बहुरि कहँ पावै,*
*पीछे ही पछिताइ ॥१॥*
*प्राण-पति जागे सुन्दरि क्यों सोवे,*
*उठ आतुर गहि पाइ ।*
*कोमल वचन करुणा कर आगे,*
*नख शिख रहु लपटाइ ॥२॥*
*सखी सुहाग सेज सुख पावै,*
*प्रीतम प्रेम बढ़ाइ ।*
*दादू भाग बड़े पीव पावै,*
*सकल शिरोमणि राइ ॥३॥*
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भा० दी०-हे मनोवृत्ते ! त्वं मम सखीसमानाऽसि । अतोऽहं त्वां संबोधयामि । प्रगाढनिद्रायां दिवारानं सुप्ताऽसि । आयुष्यच ते प्रतिक्षणं क्षीयते । अत: प्रियतमं प्रभुं शीघ्र प्रसादय । इदानीं बहुदूरं गन्तव्यमस्ति । अविद्याग्रस्तायास्तव भजनवस्तु तरङ्गवदनारतं गच्छति । अस्मिन्नेव मानवदेहे प्रभुः प्राप्तव्यस्त्वया नान्यस्मिन् शरीरे । अन्यथा तु पश्चात्ताप एव भवेत् । प्राणेश्वरः परमात्मा तु भक्तेभ्यो दर्शनदानाय समुद्यतो वर्तते । पुनरपि त्वं कथं स्वपिषि । सत्वरमुत्थाय प्रभुचरणशरणग्रहणं कुरु । अतिनम्रतया करुणापूर्णवाचा भगवन्तं भज । नखादारभ्य शिखापर्यन्तं सकलं शरीरं प्रभुचरणकमलयो: समर्पितं कुरु । प्रियतमेन प्रभुणा सह प्रेम प्रदर्शय । प्रेग्णैव हृदयान्तराले सौभाग्यसुखं लभ्यते, भाग्येनैव कश्चिद् भगवन्तं प्राप्नोति ।
उक्तं हि योगवासिष्ठे- -
आगमापायपरया क्षणसंस्थितिनाशया ।
नविभेति हि संसारे धीरोऽपि क इवानया॥

अध्यात्मरामायणे-
आपदः क्षणमायान्ति क्षणमायान्ति संपदः ।
क्षणं जन्म क्षणं मृत्युर्मुने किमिव न क्षणम्॥
सीदन्ति प्राणा: सीदन्त्येवेह जातस्त्वन्यो नरो दिनैः ।
सदेकरूपं भगवान् किञ्चिदस्ति न तत् स्थिरम्॥
अतो वृद्धावस्थात: पूर्वमेव सर्वैरपि भगवान् ज्ञातव्यः ।
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हे चित्तवृत्ति ! तुम मेरी सखी के तुल्य हो, इससे मैं तुझे सावधान कर रहा हूं । तुम अगाध निद्रा में सोई हुई हो । आयु प्रतिक्षण दिन-रात की तरह क्षीण हो रही है । अतः अपने प्यारे प्रभु को जल्दी ही प्रसन्न करो । अभी तुम को बहुत दूर जाना है । अविद्या में सोते रहने से राम-भजन का अवसर नदी के तरंग की तरह दिन-रात बीता जा रहा है । इसी शरीर से भगवान् प्राप्त किया जाता है अन्यथा अन्त में पश्चाताप करना पड़ेगा । 
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प्राणेश्वर परमात्मा तो भक्तों को दर्शन देने के लिये उत्कण्ठित रहते हैं, फिर भी तू कैसे सोई हुई है, शीघ्र ही खड़ी होकर(जागकर) हरि के चरणों की शरण ग्रहण करके अति नम्रता से करुणापूर्वक स्वर से भगवान् की स्तुति कर । नख से शिखा पर्यन्त सारा शरीर भगवान् को अर्पण कर दे । प्रियतम प्रभु के साथ प्रेम करो, प्रेम करने से ही वे तुम्हारी-हृदय-शय्या पर जब आयेंगे, तब तेरे को सौभाग्य-सुख प्राप्त होगा । भाग्यवान् ही भगवान् को प्राप्त कर सकता है । 
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अध्यात्मरामायण में-
हे मुने ! यहां क्षण में आपत्तियां आती है और क्षण में सम्पत्तियां, क्षण में जन्म और क्षण में मृत्यु । इस जगत् में कौनसी ऐसी वस्तु है कि क्षणिक न हो ? भगवान् कहां उत्पन्न हुआ ? मनुष्य पहले कुछ और ही था, थोड़े दिनों बाद कुछ और प्रकार का हो जाता है । यहां एक रस रहने वाले सुस्थिर वस्तु कोई भी नहीं है । अत अविद्या से जाग कर वृद्धावस्था से पहले ही भगवान को जान लेना चाहिये । 
(क्रमशः)

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