बुधवार, 1 दिसंबर 2021

*ध्यान के लक्षण*

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*पहली था सो अब भया, अब सो आगे होइ ।*
*दादू तीनों ठौर की, बूझै बिरला कोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ लै का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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"ध्यान ठीक हो रहा है इसके कई लक्षण हैं । एक यह है कि जड़ समझकर सिर पर पक्षी बैठ जाया करेंगे ।
"केशव सेन को मैंने पहले आदि-समाज में देखा था । वेदी पर कई आदमी बैठे हुए थे, बीच में केशव । मैंने देखा, काष्ठवत् बैठा हुआ था । तब मैंने सेजो बाबू से कहा - देखो, इसकी बंसी का चारा मछली खा रही है । वह उतना ध्यानी था इसी के बल से और ईश्वर की इच्छा से उसने जो कुछ सोचा वह हो गया ।
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"आँख खोलकर भी ध्यान होता है । बातचीत के बीच में भी ध्यान होता है । जैसे, सोचो, किसी को दाँत की बीमारी है । दर्द हो रहा है ।
ठाकुरों के शिक्षक - जी, यह बात खूब समझी हुई है । (हास्य)
श्रीरामकृष्ण - (सहास्य) - हाँ जी, दाँत की बीमारी अगर किसी को होती है, तो वह सब काम तो करता है, परन्तु मन उसका दर्द पर रखा रहता है । इस तरह ध्यान आँख खोलकर भी होता है और बातचीत करते हुए भी होता है ।
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शिक्षक - उनका नाम पतितपावन है - यही हम लोगों का भरोसा है । वे दयामय हैं !
श्रीरामकृष्ण - सिक्खों ने भी कहा था, वे दयामय हैं । मैंने पूछा वे कैसे दयामय हैं ? उन्होंने कहा, 'क्यों महाराज, उन्होंने हमारी सृष्टि की है, हमारे लिए इतनी चीजें तयार की हैं, पग-पग पर हमें विपत्ति से बचाते हैं ।'
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तब मैंने कहा, 'वे हमें पैदा करके हमारी देखरेख कर रहे हैं, खिलाते-पिलाते हैं इसमें कौनसी बड़ी तारीफ की बात है ? तुम्हारे अगर बच्चा हो तो क्या उसकी देखरेख कोई दूसरा आकर करेगा ?''
शिक्षक - जी, किसी का काम जल्दी हो जाता है और किसी का नहीं होता, इसका क्या अर्थ है ?
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श्रीरामकृष्ण - बात यह है कि बहुत कुछ तो पूर्वजन्म के संस्कारों से होता है । लोग सोचते हैं कि एकाएक हो रहा है ।
"किसी ने सुबह को प्याले भर शराब पी थी । उतने ही से मतवाला हो गया, झूमने लगा । लोग आश्चर्य करने लगे । वे सोचने लगे, यह प्याले भर में ही इतना मतवाला कैसे हो गया ? एक ने कहा, अरे रात भर इसने शराब पी होगी ।
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"हनुमान ने सोने की लंका जला दी । लोग आश्चर्य में पड़ गये कि एक बन्दर ने कैसे यह सब जला दिया; परन्तु फिर कहने लगे, वास्तव में बात यह है कि सीता की गरम साँस और राम के कोप से लंका जली है ।
"और लालाबाबू को देखो । इतना धन है, पूर्वजन्म के संस्कार के बिना क्या एकाएक कभी वैराग्य हो सकता था ? और रानी भवानी - स्त्री होने पर भी उसमें कितनी ज्ञान भक्ति थी !
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“अन्तिम जन्म में सतोगुण होता है । तभी ईश्वर पर मन जाता है, उनके लिए विकलता होती है, और तरह तरह के विषय-कर्मों से मन हटता जाता है ।
"कृष्णदास पाल आया था । मैंने देखा उसमें रजोगुण था । परन्तु हिन्दू है, इसलिए जूते बाहर खोलकर रखे, कुछ बातचीत करके देखा, भीतर कुछ नहीं था ।
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मैंने पूछा, 'मनुष्य का कर्तव्य क्या है ?' उसने कहा - 'संसार का उपकार करना ।' मैंने कहा, 'क्यों जी, तुम हो कौन ? और उपकार भी क्या करोगे और संसार क्या इतना छोटा है कि तुम उसका उपकार कर सकोगे ?"
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नारायण आये हैं । श्रीरामकृष्ण को बड़ा आनन्द है । नारायण को छोटी खाट पर अपनी बगल में बैठाया । देह पर हाथ फेरते हुए स्नेह करने लगे । खाने के लिए मिठाई दी और स्नेहपूर्वक पानी के लिए पूछा । नारायण मास्टर के स्कूल में पढ़ते हैं । श्रीरामकृष्ण के पास आते हैं, इसलिए घर में मारे जाते हैं । श्रीरामकृष्ण हँसते हुए स्नेहपूर्वक नारायण से कह रहे है, – “तू एक चमड़े का कुर्ता पहना कर, तो कम लगेगा ।”
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फिर नारायण से कहने लगे - "हरिपद की वह बनी हुई माँ आयी थी । मैने हरिपद को खूब सावधान कर दिया है । वे लोग घोषपाड़ा के मतवाले हैं । मैंने उससे पूछा था, क्या तुम्हारे कोई 'आश्रय' है ? उसने एक चक्रवर्ती को बतलाया ।"
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श्रीरामकृष्ण - (मास्टर से) – अहा ! उस दिन नीलकण्ठ आया था । कैसा भाव है ! - और एक दिन आने के लिए कह गया है । गाना सुनायेगा । आज उधर नाच हो रहा है, जाओ - देखो न । (रामलाल से) तेल नहीं है; (हण्डी देखकर) हण्डी में तो नहीं है ।
(क्रमशः)

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