शुक्रवार, 14 जनवरी 2022

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*दादू पंच आभूषण पीव कर, सोलह सब ही ठांव ।*
*सुन्दरी यहु श्रृंगार करि, ले ले पीव का नांव ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
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*॥ भेष भक्त भय से भेष नहीं त्यागता ॥*
भेष भक्त भय से कभी, तजत भेष निज नाँहि ।
दुगुण सजा भगवानदास, गये सभा के माँहि ॥२२२॥
दृष्टांत कथा - भक्त भगवानदासजी मथुरा में रहते थे । एक समय बादशाह ने परीक्षा के लिये डौंडी पिटवाई कि - 'जो माला तिलक धारण करेगा तो उसे प्राणान्त दण्ड मिलेगा ।' बहुतों ने माला तिलक त्याग दिये किन्तु भगवानदासजी नहीं डरे और अपने अनुगामियों के सहित अन्य दिनों से दुगने तिलक-माला धारण करके बादशाह की सभा में गये । बादशाह अपनी आज्ञा का भंग करने का कारण पूछा ।
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भगवानदासजी ने निर्भयता से कहा - 'हमारे धर्म में माला तिलक सहित प्राण जाय तो उद्धार होता है । जब हमें अपनी मृत्यु ज्ञात हो गई, तब अच्छी प्रकार तिलक और माला धारण करके बिना परिश्रम ही क्यों न मुक्ति प्राप्त करें ।' भगवानदासजी का यह दृढ विश्वास देख करके बादशाह प्रसन्न हो गया । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भय से अपना भेष नहीं त्यागते ।

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