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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१५६)*
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*१५६. तुरंग । लील ताल
*जाग रे सब रैण बिहांणी,*
*जाइ जन्म अंजलि को पाणी ॥टेक॥*
*घड़ी घड़ी घड़ियाल बजावै,*
*जे दिन जाइ सो बहुरि न आवै ॥१॥*
*सूरज चंद कहैं समझाइ,*
*दिन दिन आयु घटती जाइ ॥२॥*
*सरवर पाणी तरवर छाया,*
*निशिदिन काल गिरासै काया ॥३॥*
*हंस बटाऊ प्राण पयाना,*
*दादू आतम राम न जाना ॥४॥*
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भा०दी०- हे जीव ! शीघ्रं जागृहि यतो ह्यायुभिन्नघटाम्बुवत् प्रतिक्षणं क्षीयते । तव जन्माऽप्यञ्जलिस्थसलिलवन्मुधैव स्रवति । गतानि दिनानि न पुनरायास्यन्तीति संघटाघोषं प्रहरिणा सूच्यते । सूर्यचन्द्रमसावपि स्वगतागताभ्यामिदमेव संकेतयतोयदायुः क्षणशो व्ययं गच्छति । किञ्च यथा सरोवरजलं वृक्षच्छाया च समयानुसारं शुष्यति नश्यति च, तथैव कालोऽपि शरीरस्थमायुः प्रतिक्षणं क्षिणोति । अतो रामभजनं विनैव पथिकस्य जीवस्य प्राणरूपो हंसो निर्गच्छति । मृत्युमुपगच्छतति भावः ।
वासिष्ठे- वैराग्ये
निर्दय: कठिन: क्रूरः कर्कश: कृपणोऽधमः ।
न तदस्ति यदद्यापि न कालो निगिरत्ययम्॥९॥
तृणं पासुं महेन्द्रश्च सुमेरुं पर्णपर्णवम् ।
आत्मम्भरितया सर्वमात्मसात्कर्तुमुद्यतः ॥१९॥
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हे जीव ! तू शीघ्र ही जाग, जाग । तेरी आयु घड़े के जल की तरह शीघ्र ही नष्ट हो रही है । तेरा जन्म भी अंजलि के पानी की तरह व्यर्थ ही जा रहा है । घड़ियाल को बजाने वाला प्रहरी भी घंटा बजा-बजाकर कह रहा है कि बीता हुआ दिन फिर जीवन में नहीं आता । सूर्य चन्द्रमा भी अपने आने और जाने से यही सूचित कर रहे हैं कि प्रतिक्षण आयु नष्ट हो रही है ।
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जैसे तालाब का पानी और वृक्षों की छाया प्रतिक्षण समयानुसार नष्ट होती रहती है, ऐसे ही शरीर की आयु भी नष्ट हो रही है । इस तरह देखते-देखते इस पथिक जीव के शरीर में से हंस आत्मा निकल जाता है और शरीर मर जाता है ।
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यह काल, निर्दयी, कठोर क्रूर स्वभाव वाला, कर्कश, कृपण, और अधम है । ऐसी कोई वस्तु नहीं जिसको काल न निगलता हो ।
तृण, धूलि, इन्द्र, सुमेरु पर्वत, पत्ते, समुद्र इन सबको अपने पेट में भरने वाला सबको निगलने के लिये उद्द्यत हो रहा है ।
(क्रमशः)
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