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*दादू सिरजनहारा सबन का, ऐसा है समरत्थ ।*
*सोई सेवक ह्वै रह्या, जहँ सकल पसारैं हत्थ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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विजय गोस्वामी – अहा ! अहा ! कैसी बात है । जिनका मन एकमात्र उन्हीं पर लगा रहता है, जो उनके प्रेम में पागल हो जाते हैं, उनका भार ईश्वर स्वयं ढोते हैं । नाबालिगों को बिना खोजे आप ही पालक मिल जाते हैं । अहा, यह अवस्था कब होगी ? जिनकी होती है, वे कितने भाग्यवान हैं !
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त्रैलोक्य - महाराज, संसार में क्या यथार्थ ज्ञान होता है ? - ईश्वर मिलते हैं ?
श्रीरामकृष्ण - (हँसते हुए) – क्यों - तुम तो मौज में हो । (सब हँसते हैं ।) ईश्वर पर मन रखकर संसार में हो न ? अवश्य ही काम हो जायेगा ।
त्रैलोक्य - संसार में ज्ञानलाभ होता है, इसके लक्षण क्या है ?
श्रीरामकृष्ण - ईश्वर का नाम लेते हुए, उसकी आँखों से धारा वह चलेगी, शरीर में पुलक होगा । उनका मधुर नाम सुनकर शरीर रोमांचित होने लगेगा और आँखों से धारा वह चलेगी ।
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"जब तक विषय की आसक्ति रहती है, कामिनी कांचन पर प्यार रहता है, तब तक देहबुद्धि दूर नहीं होती । विषय की आसक्ति जितनी घटती जाती है, उतना ही मन आत्मज्ञान की ओर बढ़ता जाता है और देहबुद्धि भी घटती जाती है । विषय की आसक्ति के समूल नष्ट हो जाने पर ही आत्मज्ञान होता है, तब आत्मा अलग जान पड़ता है और देह अलग ।
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नारियल का पानी सूखे बिना गोले को नारियल से काटकर अलग करना बड़ा मुश्किल है । पानी सूख जाता है तो नारियल का गोला खड़खड़ता रहता है । वह खोल से छूट जाता है । इसे पका हुआ नारियल कहते हैं ।
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"ईश्वर की प्राप्ति होने का यही लक्षण है कि वह आदमी पके हुए नारियल की तरह हो जाता है - तब उसकी देहात्मिकाबुद्धि चली जाती है । देह के सुख और दुःख से उसे सुख या दुःख का अनुभव नहीं होता । वह आदमी देह-सुख नहीं जानता, वह जीवन्मुक्त होकर विचरण करता है ।
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"जब देखना कि ईश्वर का नाम लेते ही आँसू बहते हैं और पुलक होता है, तब समझना, कामिनी-कांचन की आसक्ति चली गयी है, ईश्वर मिल गये हैं । दियासलाई अगर सूखी हो, तो घिसने से ही जल उठती है । और अगर भीगी हो, तो चाहे पचासों सलाई घिस डालो कहीं कुछ न होगा, सलाइयों की बरबादी करना ही है ।
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विषय रस में रहने पर कामिनी और कांचन में मन भीगा हुआ होने पर, ईश्वर की उद्दीपना नहीं होती । चाहे हजार उद्योग करो, परन्तु सब व्यर्थ होगा । विषय रस के सूखने पर उसी क्षण उद्दीपन होगा ।”
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त्रैलोक्य - विषय रस को सुखाने का अब कौनसा उपाय है ?
श्रीरामकृष्ण - माता से व्याकुल होकर कहो । उनके दर्शन होने पर विषय-रस आप ही सूख जायेगा । कामिनी-कांचन की आसक्ति सब दूर हो जायेगी । 'अपनी माँ हैं' ऐसा बोध हो जाने पर इसी समय मुक्ति हो जायेगी । वे कुछ धर्म की माँ थोड़े ही हैं, अपनी माँ हैं ।
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व्याकुल होकर माता से कहो - हठ करो । बच्चा पतंग खरीदने के लिए माता का आँचल पकड़कर पैसे माँगता है । माँ कभी उस समय दूसरी स्त्रियों से बातचीत करती रहती है । पहले किसी तरह पैसे देना ही नहीं चाहती । कहती है - 'नहीं, वे मना कर गये हैं । आयेंगे तो कह दूंगी, पतंग लेकर एक उत्पात खड़ा करना चाहता है क्या ?"
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पर जब लड़का रोने लगता है, किसी तरह नहीं छोड़ता, तब माँ दूसरी स्त्रियों से कहती है, तुम जरा बैठो, इस लड़के को बहलाकर मैं अभी आयी । यह कहकर चाभी ले, झटपट सन्दूक खोलती है और एक पैसा बच्चे के आगे फेंक देती है । इसी तरह तुम भी माता से हठ करो । वे अवश्य ही दर्शन देंगी । मैंने सिक्खों से यही बात कही थी । वे लोग दक्षिणेश्वर के कालीमन्दिर में गये थे ।
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कालीमन्दिर के सामने बैठकर बातचीत हुई थी । उन लोगों ने कहा था, ईश्वर दयामय हैं । मैंने पूछा, क्यों दयामय है ? उन लोगों ने कहा, क्यों महाराज, वे सदा ही हमारी देख-रेख करते हैं, हमें धर्म और अर्थ सब दे रहे हैं, खाने को देते हैं । मैंने कहा, अगर किसी के लड़के-बच्चे हों, तो उनकी खबर, उनके खाने-पीने का भार उनका बाप न लेगा, तो क्या गाँववाले आकर लेंगे ?
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सब-जज - महाराज, तो क्या वे दयामय नहीं है ?
श्रीरामकृष्ण - है क्यों नहीं ? वह एक बात उस तरह की कहनी ही थी । वे तो अपने परम आत्मीय हैं । उन पर हमारा जोर है । अपने आदमी से तो ऐसी बात भी कही जा सकती है - 'देगा कि नहीं ? - - साला कहीं का !’
(क्रमशः)
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