गुरुवार, 20 जनवरी 2022

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*दादू साध सबै कर देखना, असाध न दीसै कोइ ।*
*जिहिं के हिरदै हरि नहीं, तिहिं तन टोटा होइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
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*॥ भेष भक्त भेषधारी शव का भी चरणामृत लें ॥*
भेष धारि शव का सु लें, भेष भक्त पद पाथ ।
गिरिधर ग्वाल ने लिया, चरणामृत निज हाथ ॥२२५॥
दृष्टांत कथा - भक्त गिरिधर ग्वाल ने एक साधु के शव को देखा और उसके चरण धोकर चरणामृत लेने लगे । दूसरे ब्राह्मणों ने यह अयोग्य समझ कर उन्हें रोका । वे बोले - 'भगवत् भक्त की मृत्यु नहीं होती, जो तुम भक्त को मृतक कहते हो यह तो तुम्हारा अविश्वास है । भक्त तो भगवान में मिलकर अमर हो जाता है । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भेष धारी शव के पद(चरण) का पाथ(जल) भी लेते हैं ।

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