शनिवार, 15 जनवरी 2022

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🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*कोई नूर पिछाणैं रे,*
*कोई तेज कों जाणैं रे, कोई ज्योति बखाणैं रे ॥*
*कोई साहिब जैसा रे,*
*कोई सांई तैसा रे, कोई दादू ऐसा रे ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
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*॥ भेष भक्त को भेष से प्रसन्नता ॥*
भेष भक्त का भेष लख, मुख प्रसन्न हो जात ।
भाँड़ों का नाचादि लख, धन्य कहा हर्षात ॥२२४॥
दृष्टांत कथा - एक राजा की साधु भेष में बड़ी प्रीति थी । वह साधु सेवा बहुत करता था किन्तु भगवत् विमुख भांड आदिकों को कुछ भी नहीं देता था । कुछ भांड साधु भेष बना कर राजा के पास गये । राजा ने अपने भाव के अनुसार उनका सत्कार किया । स्वभाव वश भांडों ने वहां भी नाच गानादि आरम्भ कर दिया । यह देख कर राजा बोले - 'धन्य है भगवत् भक्तों को, जो अपने सेवकों को, ढोल बजा कर तथा नाच गाना करके भी कृतार्थ करते हैं ।
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फिर विदाई के समय राजा ने एक मुहरों के थाल भाँड़ों के आगे रक्खा किन्तु राजा के विश्वास तथा सतसंग से भाँड़ों का मन भी बदल गया । वे उसे न लेकर स्वयं भगवत् भजन में लग गये । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भेष से प्रसन्न होते हैं और उनके संग से कपटी भी सच्चे भक्त बन जाते हैं ।

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