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*परमार्थ को राखिये, कीजे पर उपकार ।*
*दादू सेवक सो भला, निरंजन निराकार ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
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*॥ भेष भक्त साधु भेष का अपमान नहीं करते ॥*
भेष भक्त शुभ भेष का, करते नहिं अपमान ।
भूप चतुर्भुज ने भले, किया भाट सन्मान ॥२२३॥
दृष्टांत कथा - करौली के राजा चतुर्भुज साधु भेष के बड़े भक्त थे । नगर के चारों ओर चार-चार कोस पर अपने सेवक छोड रक्खे थे । कोई भी साधु को देखते ही वे तुरन्त राजा को सूचना दे देते थे और राजा स्वयं सेवक के सामने जाकर उन्हें लाते तथा रानी के सहित अपने हाथों से चरण धोकर पूजा करते थे ।
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उनकी भेष सेवा सुन कर एक दूसरे राजा ने अपने विद्वान से कहा - 'जब योग्य अयोग्य का विचार नहीं तब भक्ति की क्या विशेषता है' ? विद्वान ने कहा - 'वे अपने मन में समझ लेते होंगे ।' फिर उस राजा ने परीक्षा के लिये एक भाट को कहा - 'तू हरिदासजी बन कर करौली के राजा के पास जा ।' वह साधु भेष बना कर आया ।
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राजा चतुर्भुज ने अन्य साधुओं की भांति उसकी भी पूजा की । भोजन आदि के बाद सत्संग होने लगा । भाट हूँ हां करता रहा । राजा समझ गये कि किसी ने परीक्षा के लिये भेजा है । फिर विदा करते समय राजा ने अन्य वस्तुओं के साथ एक डिबिया में एक फूटी कौडी धर के ऊपर से अति उत्तम जरी का वस्त्र लपेट कर मुहर छाप लगादी और उसके भेंट करदी ।
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वह अपने राजा के पास आया और चतुर्भुज की भक्ति का वर्णन करके अन्य वस्तुओं के साथ वह डिबिया भी राजा के रख दी । डिबिया को खोल कर देखा किन्तु रहस्य नहीं समझ सके । तब अपने विद्वान से पूछा । उसने कहा - 'इसका भाव यह कि ऊपर का भेष तो ऊपर के उत्तम वस्त्र के सामान उत्तम है और भीतर फूटी कौडी के समान भाट है, भक्ति नहीं ।' यह समझ कर राजा लज्जित हुआ ।
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फिर राजा ने उस विद्वान को चतुर्भुज के पास भेजा । चतुर्भुज ने उसका बड़ा सत्कार किया तथा सत्संग भी किया और जब वह जाने लगा तब अपना खजाना खोल कर कहा - 'जो इच्छा हो सो ले जाँय । पण्डित ने अन्य तो कुछ भी नहीं लिया । किन्तु राजा का प्यारा एक मैना पक्षी था उसे ही माँगा । राजा ने दे दिया ।
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पण्डित अपने राजा के पास गये और मैना का पींजरा राजसभा में लगा दिया । राज सभा को हरि विमुख देख कर मैना ने कहा - 'कृष्ण-कृष्ण कहो, तुम्हारा उद्धार हो जायगा । यह संसार असार और आगम पायी है, बिना कृष्ण भक्ति इससे उद्धार नहीं हो सकता । यह मैना का उपदेश सुन कर राज-सभा चकित-सी होगई ।
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मैना प्रति दिन सभा को उपदेश करने लगी । जब राज-सभा सहित राजा भक्त बन गये तब वह पुनः राजा चतुर्भुज के पास लौट आई । राजा चतुर्भुज भी बड़े प्रसन्न हुये । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त का अपमान नहीं करते और अभक्तों को भी भक्त बना देते हैं ।
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