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*जब समझ्या तब सुरझिया, गुरुमुख ज्ञान अलेख ।*
*ऊर्ध्व कमल में आरसी, फिर कर आपा देख ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विचार का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(५)आम-मुखत्यारी दे दो*
त्रैलोक्य - महाराज, इनको समय कहाँ है ? अंग्रेज का काम करना पड़ता है ।
श्रीरामकृष्ण - अच्छा, उन्हें आम-मुखत्यारी दे दो । अच्छे आदमी पर अगर कोई भार देता है, तो क्या वह आदमी कभी उसका अहित करता है ? उन्हें हृदय से सब भार देकर तुम निश्चिन्त होकर बैठे रहो । उन्होंने जो काम करने के लिए दिया है, तुम वही करते जाओ ।
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"बिल्ली के बच्चे में कपटयुक्त बुद्धि नहीं है । वह मीऊँ मीऊँ करके माँ को पुकारना भर जानता है । माँ अगर खँडहर में रखती है, तो देखो वहीं पड़ा रहता है । बस 'मीऊँ' करके पुकारता भर है । माँ जब उसे गृहस्थ के बिस्तरे पर रखती है, तब भी उसका वही भाव है । 'मीऊँ' कहकर माँ को पुकारता है ।"
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सब-जज - हम लोग गृहस्थ हैं, कब तक यह सब काम करना होगा ?
श्रीरामकृष्ण - तुम्हारा कर्तव्य अवश्य है । वह है बच्चों को आदमी बनाना, स्वी का भरणपोषण करना, अपने न रहने पर स्त्री के रोटीकपड़े के लिए कुछ रख जाना । यह अगर न करोगे तो तुम निर्दय कहलाओगे । शुकदेव आदि ने भी दया रखी थी । जिसको दया नहीं, वह मनुष्य ही नहीं हैं ।
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सब-जज - सन्तान का पालन-पोषण कब तक के लिए है ?
श्रीरामकृष्ण - उनके बालिग होने तक के लिए । पक्षी के बड़े होने पर जब वह खुद अपना भार ले सकता है, तब उसकी माँ उस पर चोंच चलाती है, उसे पास नहीं आने देती । (सब हँसते हैं ।)
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सब-जज - स्त्री के प्रति क्या कर्तव्य है ?
श्रीरामकृष्ण - जब तक तुम बचे हुए हो, तब तक धर्मोपदेश देते रहो, रोटी कपड़ा देते जाओ । यदि वह सती होगी, तो तुम्हारी मृत्यु के बाद जिससे उसके खाने-पहनने की कोई न कोई व्यवस्था हो जाय, ऐसा बन्दोबन्त तुम्हें कर देना होगा ।
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"परन्तु ज्ञानोन्माद के होने पर फिर कोई कर्तव्य नहीं रह जाता । तब कल के लिए तुम अगर न सोचोगे तो ईश्वर सोचेंगे । ज्ञानोन्माद होने पर तुम्हारे परिवार के लिए भी वे ही सोचेंगे । जब कोई जमींदार नाबालिग लड़कों को छोड़कर मर जाता है तब सरकार रियासत का काम सँभालती है । ये सब कानूनी बातें हैं, तुम तो जानते ही हो ।”
सब-जज - जी हाँ ।
(क्रमशः)
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