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*जाके हिरदै जैसी होइगी, सो तैसी ले जाइ ।*
*दादू तू निर्दोष रह, नाम निरंतर गाइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
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*॥ भेष भक्त भेष धारी को बड़ा भाई मानते हैं ॥*
भेष भक्त जन भेषी को, मानत हैं बड भ्रात ।
लाला चारज भक्त की, परम प्रगट यह बात ॥२२६॥
दृष्टांत कथा - लालाचार्य को अपने गुरु का उपदेश था कि भक्त भेष धारी को अपना बड़ा भाई जानना । वे गुरु के उपदेश के अनुसार ही बर्तते रहे । एक दिन माला तिलक धारी एक शव को नदी में बहते देख कर निकाल लाये और विमान बना कर बड़े उत्सव के साथ भगवत् कीर्तन करते हुये नदी पर लेजा कर दाह क्रिया की ।
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फिर भंडारे के समय ब्राह्मणों को निमन्त्रण दिया । उन लोगों ने यह कह कर कि न जाने वह किस जाति का मुर्दा था अस्वीकार कर दिया । लालाचार्य अपने गुरु के पास गये, गुरुजी उन्हें लेकर स्वामी रामानुजजी के पास गये । उन्होंने कहा - 'लोग भगवत् प्रसाद की महिमा नहीं जानते । तुम चिन्ता मत करो भोजन की सामग्री बनाओ । वैकुण्ठ से भगवत् पार्षद आकर जीमेंगे ।'
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भोजन के समय भगवत् पार्षद आये । ग्राम के ब्राह्मण यह सोच करके कि जब ये लोग जीम कर बाहर आयेंगे तब इन्हें लज्जित करेंगे, द्वार पर खड़े होगये । पार्षद उनका भाव जान गये और आकाश मार्ग से चले गये । जब ब्राह्मणों को ज्ञात हुआ तब वे लज्जित होकर भीतर गये और पार्षदों कि झूठी पत्तलें चाटने लगे । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त भेष धारी को अपने से बड़ा समझता है और उसका अनादर करने वालों को अन्त में लज्जित होना पड़ता है ।
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