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*छिन-छिन राम संभालतां, जे जीव जाइ तो जाय ।*
*आतम के आधार को, नाहीं आन उपाय ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*बीठलदास जी*
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*मू. छ. -*
*बीठलदास हरि भक्ति करि,*
*युगल पाणि१ मोदक२ चढे ॥*
*सदा प्रेम प्रण रहत, संत रज शीश चढाई ।*
*तरकि३ तज्यो संसार, एक हरि भक्ति दृढ़ाई ॥*
*संप्रदाय सिन्धुजा४, दिपत दीपक ज्यों मानों ।*
*जन परिषद५ सत्कार, करै रैदासी जाणो ॥*
*लोक उभय हरि गुरु दिये,*
*शब्द साखि निशि दिन रढे६ ।*
*बीठलदास हरि भक्ति करि,*
*युगल पाणि१ मोदक२ चढे ॥२१२॥*
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बीठलदास जी ने हरि भक्ति करके दोनों हाथों१ में लड्डू२ प्राप्त किये थे अर्थात् इस लोक में जीवन पर्यन्त भक्तिमय सुयश प्राप्त किया था और शरीरान्त होने पर भगवद् धाम प्राप्त किया था । प्रेम पूर्वक संतों की चरणरज शीश पर चढ़ाने का आपका प्रण था, उसका निर्वाह सदा अन्त तक करते रहे थे । तीव्र वैराग्य३ से आपने घर रूप संसार को त्याग दिया था ।
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अपने संपर्क में आने वालों के हृदय में हरि भक्ति दृढ़ कराई थी । श्री४ संप्रदाय में आप दीपक के समान प्रदीप्त होते रहे थे । आपको रैदास वंशी जानकर भी भक्तों की सभा५ आपका सत्कार करती थी ।
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रामजी के सुयशमय शब्द साखी आप रात दिन रटते६ थे अर्थात् पढ़ते रहते थे । हरि और गुरु ने कृपा करके आप के दोनों लोक सुधार दिये थे । रामजी के सुयशमय पद पढ़ते-पढ़ते ही आप शरीर छोड़कर रामधाम पधारे थे ।
(क्रमशः)
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