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*ज्ञान ध्यान मोहन मोहि दीजे, सुरति सदा सँग तेरे ।*
*दीन दयाल दादू को दीजे, परम ज्योति घट मेरे ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. १८०)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(६)अहंकार और सब-जज*
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श्रीरामकृष्ण - (सब-जज से) - अच्छा, अभिमान और अहंकार ज्ञान से होते हैं या अज्ञान से ? - अहंकार तमोगुण है, अज्ञान से पैदा होता है । इस अहंकार की आड़ है, इसीलिए लोग ईश्वर को नहीं देख पाते । 'मैं' मरा कि बला टली । अहंकार करना वृथा है । यह शरीर, यह ऐश्वर्य, कुछ भी न रह जायेगा । कोई मतवाला दुर्गा की मूर्ति देख रहा था ।
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प्रतिमा की सजावट देखकर उसने कहा, 'चाहे जितना बनोठनो, एक दिन लोग तुम्हें घसीटकर गंगा में डाल देंगे ।" (सब हँसते हैं।) इसीलिए सब से कह रहा हूँ, जज हो जाओ, चाहे जो हो जाओ, सब दो दिन के लिए है । इसीलिए अभिमान और अहंकार का त्याग करना चाहिए ।
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"सत्त्व, रज और तम, इन तीनों गुणों का स्वभाव अलग अलग है । तमोगुणवालों के लक्षण हैं, अहंकार, निद्रा, अधिक भोजन, काम, क्रोध, आदि आदि । रजोगुणी अधिक काम समेटते हैं; कपड़े साफ सुथरे, घर झकाझक, बैठकखाने में Queen(रानी) की तस्वीर; जब ईश्वर की चिन्ता करता है, तब रेशमी धोती पहनता है,
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गले में रुद्राक्ष की माला है, उसमें कहीं कहीं सोने के दाने पड़े रहते हैं, अगर कोई उसका ठाकुरमन्दिर देखने के लिए जाता है, तो साथ जाकर दिखाता और कहता है, 'इधर आइये, अभी और देखने को है । सफेद पत्थर – संगमर्मर - की जमीन है, सोलह द्वारों का सभामण्डप है ।'
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और आदमियों को दिखलाकर दान देता है । सतोगुणी मनुष्य बहुत ही शिष्ट और शान्त होता है; उसके कपड़े वही जो मिल गये, रोजगार बस पेट भरने के लिए; कभी किसी की खुशामद करके धन नहीं लेता; घर की मरम्मत नहीं हुई है, मान और प्रतिष्ठा के लिए एड़ी और चोटी का पसीना एक नहीं करता;
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ईश्वर-चिन्तन, दानध्यान सब गुप्त भाव से करता है - लोगों को खबर नहीं होती, मसहरी के भीतर ध्यान करता है, लोग सोचते हैं - रात को बाबू की आँख नहीं लगी, इसीलिए देर तक सो रहे हैं । सतोगुण अन्त की सीढ़ी है, उसके आगे ही छत है । सतोगुण के आने पर ईश्वरप्राप्ति में फिर देर नहीं होती - जरासा और बढ़ने से ही ईश्वर मिलते हैं ।
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(सब-जज से) तुमने कहा था, सब आदमी बराबर हैं, देखो, अलग अलग प्रकृति के कितने मनुष्य हैं ।
"और भी कितने ही दर्जे हैं - नित्यजीव, मुक्तजीव, मुमुक्षुजीव, बद्धजीव अनेक तरह के आदमी हैं । नारद, शुकदेव नित्य जीव हैं; जैसे Steam boat (कलवाला जहाज) । खुद भी पार जाता है और बड़े बड़े जीवों को - हाथियों को भी ले जाता है । नित्य जीव नायबों की तरह हैं, एक स्थान का शासन कर दूसरे का शासन करने के लिए जाते हैं ।
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मुमुक्षु जीव संसार के जाल से मुक्त होने के लिए व्याकुल होकर जान तक की बाजी लगाकर परिश्रम करते हैं । इनमें से एक ही दो जाल से निकल सकते हैं, वे मुक्त जीव हैं । नित्यजीव एक चालाक मछली की तरह हैं, वे कभी जाल में नहीं पड़ते ।
(क्रमशः)
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