शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

*भक्त कल्याण जी*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*सोई साधु शिरोमणि, गोविंद गुण गावै ।*
*राम भजै विषिया तजै, आपा न जनावै ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. ३४७)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*भक्त कल्याण जी*
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*मू. छ. –*
*दातार भलप्पन उर भलो,*
*ऐसो भक्त कल्याण है ॥*
*नीलाचल पति भृत्य१,*
*चतुर हरि को चित चाह्यो ।*
*उत्तम भक्ति पिछान, मान२ अपनों निर्वाह्यो ॥*
*देह त्यागती बेरि, हेत सीतावर कीन्हों ।*
*वाम जाम३ घर वित्त, काढ़ि मन राम हि दीन्हों ॥*
*विद्युत-प्रभा प्रकाश सम,*
*धर्यो श्याम-घन ध्यान है ।*
*दातार भलप्पन उर भलो,*
*ऐसो भक्त कल्याण है ॥२१४॥*
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धर्मदास जी के पुत्र भक्त कल्याणजी ऐसे हुये हैं कि उनके हृदय में अच्छापन तो सदा ही स्थिर रहता था । सब की भलाई ही करते थे, बड़े दातार थे ।
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नीलाचल पति जगन्नाथ जी की दासत्व१ भक्ति में बड़े ही चतुर थे । उनका चित्त सदा हरि को ही चाहता था । उनने भगवत् प्राप्ति का उत्तम साधन भगवद् भक्ति को ही जाना था तथा सन्मान२ पूर्वक भक्ति करके अपने व्रत का निर्वाह किया था ।
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शरीर छोड़ते समय सीतापति राम से ही आपने प्रेम किया था । नारी, पुत्र३, घर और धन से मन को अलग करके रामजी के स्वरूप में ही लगाया था । बिजली की प्रभा के समान सीता जी और श्याम रंग के बादल समान राम जी का ही ध्यान किया था ।
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इस प्रकार भक्त कल्याणजी बहुत ही अच्छे भक्त हो गये हैं ।
(क्रमशः)

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