बुधवार, 19 जनवरी 2022

*२२. बेसास कौ अंग ~ ३३/३६*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२२. बेसास कौ अंग ~ ३३/३६*
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भारत१ हरि रक्षा करी, अण्डा लिये उबारि२ ।
मंजारी सुत३ अगनि मैं, म्रिग बन फंद मंझारि४ ॥३३॥
(१. भारत=महाभारत युद्ध में) (२. उबारि=उद्धार किया) (३. मंजारी सुत=बिल्ली का बच्चा) (४=मंझारि=बीच में)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु सर्वत्र हमारे रक्षक हैं । उन्होंने महाभारत युद्ध में रक्षा करी । और रथ के नीचे अण्डों को भी बचा लिया । बिल्ली के बच्चों को जलते आवे में रक्षा कर बचाया और स्वयं ने मृग रुप में कृपाकर उन्हें बचाया ।
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कहि जगजीवन रांमजी, कोइ सुमिरौ नर नारि ।
ध्रू प्रहलाद कबीर ज्यूं, पार करै तन तारि ॥३४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम नाम का स्मरण सभी नर नारी करें । इस नाम के स्मरण से ध्रुव, प्रहलाद, कबीर ने जैसे अपना भव पार का साधन कर लिया वैसे ही सबका होगा ।
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म्रिग बन रोप्यौ पारधी५, सुनहां फंद दौ लाइ ।
कहि जगजीवन रांमजी, सम्रथ राख्यौ ताहि ॥३५॥
(५. पारधी=शिकारी)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जैसे मृग ने शिकारी को रोका और कुत्ते ने फंद को अग्नि लगाई । इन सबमें बुद्धि देकर परमात्मा ने ही उन्हें बचाया ।
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गज संकट बाहरि६ चढै, म्रिगवन भेट्यौ त्रास७ ।
मंजारी सुत अगनि मैं, सुकहि जगजीवनदास ॥३६॥
(६. बाहरि=सहायता के साधन) (७. त्रास= दुःख)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि गज की सहायता किये प्रभु ने, मृग का दुख वन में मिटाया । बिल्ली के बच्चों को अग्नि से बचाया । संत जग जीवन जी कहते हैं ऐसे प्रभु जो जहाँ भी पुकारता है वे वहां ही रक्षा करते हैं ।
(क्रमशः)

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