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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२२. बेसास कौ अंग ~ २९/३२*
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परमेसुर के नांम की, जिन जिन पकड़ी वोट८ ।
कहि जगजीवन काल की, तिन कूं लगी न चोट९ ॥२९॥
(८. वोट=कारण) (९. चोट==आघात)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिन जन ने प्रभु नाम का सहारा ले लिया है उन्हें यम काल की चोट या मृत्यु भय कभी नहीं सताता है ।
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परमेसुर का नांम मंहि, जे जन रहै समाइ ।
कहि जगजीवन फूलि१० मंहि, आनंद अंग न मांइ ॥३०॥
(१०. फूल मंहि=ह्रदय में सुख=अनुभव करना)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो जन अपना सब कुछ प्रभु को, समर्पित कर देते हैं वे इतने आनंदित रहते हैं कि उनका आनंद देह से भी बाहर छलकता रहता है ।
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परमेसुर नांम सौ, जिन जिन कीन्हीं प्रीति ।
कहि जगजीवन ते रहैं, रांम परसि जग जीति ॥३१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जिन्होंने भी राम नाम से प्रीत करी है वे जन ही संसार को जीत पाये हैं । उन्हें ही राम जी का सानिध्य मिला है ।
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परमेसुर कौ नांम धन, रांम नांम निज आथि११ ।
जगजीवन सोई गहै, जे चलता चालै साथि१२ ॥३२॥
(११. आथि=साथ रहे) (१२. चलतां चालै साथि=मार्ग का साथि)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि परमेश्वर का नाम ही धन है वह ही रामनाम साथ चलता है । और वह ही इसे प्राप्त करता है जो इसके साथ चलता है ।(क्रमशः)
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