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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२२. बेसास कौ अंग ~ ४१/४४*
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कहि जगजीवन करम का, अंक लिख्या पहिचान ।
अलख दिखावै देखि सब, रांम ह्रिदा मैं आंम ॥४१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि अपने भाग्य के लिखे लेख पहचान । जो प्रभु सब दिखा रहे जो दिखता नहीं है वह भी दिखा रहे हैं सब देख और अपने हृदय में सदा राम रख । स्मरण करो ।
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जगजीवन संसार तजि, रहिये हरि की वोट१३ ।
अपणैं पिव कौं छांडि करि, काहै कीजै खोट१४ ॥४२॥
(१३. वोट=शरणस्थल) (१४. खोट=दोष)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हे जीवात्मा संसार को छोड़कर हरि जी के सहारे रहो । अपने प्रभु को छोड़कर दूसरे से आशा करना दोष युक्त है ।
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हरिजन के हरि हैं हरि, ज्यूं बछड़ा कों गाइ ।
जगजीवन कहै क्यूं तजै, बालक कों जनमाइ१ ॥४३॥
(१. जनमाइ=पैदा कर)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु के बंदों के साथ प्रभु ऐसे हैं जैसे बछड़े के साथ गाय का व्यवहार होता है वह उसे छोड़ती ही नहीं है । संत कहते हैं कि क्या कोइ बालक को जन्म देकर ऐसे ही छोड़ता है ? ऐसे ही प्रभु भी भक्त वत्सल है ।
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कहि जगजीवन रांमजी, जोग भोग तप तेज ।
नांम गह्या तहँ सब लह्या, सतगुरु सोभित सेज२ ॥४४॥
(२. सेज=सिंहासन)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि योग, भोग, तप, तेज ये सब स्मरण करने से मिलते हैं । और फिर सतगुरु महाराज का सान्निध्य और मिलता है ।
(क्रमशः)
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