शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

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*दादू औगुण गुण कर माने गुरु के,*
*सोई शिष्य सुजाण ।*
*सतगुरु औगुण क्यों करै, समझै सोई सयाण ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
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*॥ गुरु भक्त शिष्य पर गुरु कृपा ॥*
भक्त शिष्य पर सुगुरु की, कृपासु देखि जाय ।
विरजानंद ने प्रेम से लीना हृदय लगाय ॥२३४॥
दृष्टांत कथा - आर्य समाज के प्रवर्तक स्वामी दयानन्दजी अपने गुरु विरजानन्दजी की सप्रेम सेवा करते थे । विरजानन्दजी सदा यमुना जल से स्नान किया करते थे । उनके लिये दयानन्दजी प्रति दिन प्रात: ही बारह घड़े यमुना जल के ले आते थे । फिर आश्रम में झाडू अदि सेवा भी करते थे । एक दिन झाडू देते समय कहीं पर थोड़ा-सा कूड़ा रह गया और उस पर विरजानन्दजी का पैर जा पड़ा ।
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इस पर उन्होंने दयानंदजी को डंडे से पीटना आरम्भ किया । स्वामी दयानन्दजी पहले तो कुछ भी न बोले फिर बहुत पीटने पर बोले - 'गुरुदेव ! अब आप मुझे मत मारिये, आपके हाथ दुखने लग जांएँगे ।' यह कह कर गुरु के हाथ सहलाने लगे । शिष्य की ऐसी भक्ति देख कर गुरु प्रसन्न हो गये और स्वामी दयानन्दजी को गले लगा लिया । इससे सूचित होता है कि गुरु भक्त शिष्य पर ही गुरु कृपा होती है ।

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