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🌷 *#०दृष्टान्त०सुधा०सिन्धु* 🌷
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*तन मन धन करूँ वारनैं, प्रदक्षिणा दीजे ।*
*शीश हमारा जीव ले, नौछावर कीजे ॥*
*भाव भक्ति कर प्रीति सौं, प्रेम रस पीजे ।*
*सेवा वंदन आरती, यहु लाहा लीजे ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
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*॥ गुरु भक्त गुरु सेवा में प्राण भी देते हैं ॥*
सुगुरु भक्त गुरु सेव में, निजी प्राण भी देय ।
पिता मरा सुत शीघ्र तर, आया गुरु शव लेय ॥२३५॥
दृष्टांत कथा - बादशाह ने गुरु तेगबहादुर के शव का अन्त्येष्ठी सत्कार करने से रोक दिया । चौराहे पर जहां वध किया था वहां ही वह पड़ा २ सड़ेगा । उसो जो उठायेगा उसे प्राणान्त दण्ड दिया जायगा । गुरु गोविन्दसिंह उस समय सोलह वर्ष के थे । पिता के शरीर का संस्कार जैसे भी हो करना है । यह निश्चय करके वे देहली जा रहे थे ।
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मार्ग में एक निर्धन गाड़ी वाले सिख ने उनको कहा - 'आप देहली न जाँय । हम पिता पुत्र दोनों जाते हैं । गुरु गोविन्दसिंह को नगर से कई मील दूर छोड़ करके वे दोनों गुरु के शव के पास पहुँचे । शव में दुर्गन्ध आने से वहां के नियुक्त सैनिक दूर हट गये थे । पिता ने पुत्र से कहा - 'हम दोनों में से एक को प्राण त्यागने होंगे क्योंकि शव के स्थान पर दूसरा शव नहीं होने से सैनिकों की दृष्टि पड़ते ही वे सावधान होकर गुरु गोविक्द्सिंह की खोज में निकल पड़ेंगे । तुम सबल हो, गुरु के देह को ले जा सकते हो ।'
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यह कहकर पिता ने अपनी छाती में कटार मार ली और गिर पड़ा । पिता के शव को गुरु के शव के स्थान पर रखकर, गुरु के शव को लेकर चल दिया । इससे सूचित होता है कि गुरु भक्त सेवा में प्राण तक भी दे देते हैं ।
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