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*दादू धरती ह्वै रहै, तज कूड़ कपट अहंकार ।*
*सांई कारण सिर सहै, ताको प्रत्यक्ष सिरजनहार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ जीवित मृतक का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*पृथ्वीराज कछवाहा*
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*मूल छप्पय –*
*कूर्म कुल दुती वलि विक्रम,*
*निबह्यो पन पृथ्वीराज को ॥*
*दया द्वारिकानाथ, करै तो दर्शन जा जे ।*
*परे कुदरती चक्र, आय आँमेर निवाजे ॥*
*घर घरनी बाईस, आप राजा ऋतु गामी ।*
*सुत उपजे षट् दोय,*
*भये नव-खंड मधि नामी ॥*
*हरि भक्तन को भक्त हो,*
*राघव बड़ कुल काज को ।*
*कूर्म कुल दुती वलि विक्रम,*
*निबह्यो पन पृथ्वीराज को ॥२१८॥*
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आँमेर नरेश पृथ्वीराज जी कछवाहा भक्ति रूप बल में दूसरे बलि के समान थे ।
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आपके मन में था कि द्वारिकानाथ दया करें तो उनका दर्शन करने द्वारिका जाऊं किन्तु स्वाभाविक ही उनकी भुजाओं में चक्रादिक की छाप आ लगी और द्वारिकानाथजी ने आँमेर में आकर ही पृथ्वीराज को दर्शन देने की कृपा की ।
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आपके घर में बाईस रानियाँ थीं किन्तु राजा स्वयं ऋतु गामी थे, विषयी नहीं थे । आपके छः और दो आठ अथवा षट् दोय-बारह पुत्र उत्पन्न हुये थे । वे नव-खंड में प्रसिद्ध थे ।
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आप हरि भक्तों के भक्त हुए हैं । आपका कुल भी बड़ा था और काम भी बड़े थे । यहां पृथ्वीराज को कूर्म वंशी कहा है । कुछ लोग कहते हैं – रामजी के पुत्र कुश के वंश के क्षत्रिय कछवाहा कहलाते हैं ।
(क्रमशः)
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