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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१६०)*
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*१६०. उदीक्षण । ताल*
*मन बावरे हो, अनत जनि जाइ,*
*तो तूँ जीवै अमीरस पीवै,*
*अमर फल काहे न खाइ ॥टेक॥*
*रहु चरण शरण सुख पावै, देखहु नैन अघाइ ।*
*भाग तेरे पीव नेरे, थीर थान बताइ ॥१॥*
*संग तेरे रहै घेरे, सहजैं अंग समाइ ।*
*शरीर मांही शोध सांई, अनहद ध्यान लगाइ ॥२॥*
*पीव पास आवै सुख पावै, तन की तप्त बुझाइ ।*
*दादू रे जहँ नाद ऊपजै, पीव पास दिखाइ ॥३॥*
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भादी०- अरे उन्मत्त मन: ! प्रभुचिन्तनंविहायान्यत्रासञ्जसे त्वम् । भक्तिरूपामृतरसं पीत्वैव त्वं जीवितुमर्हसि । कथय, प्रभुरसामृतं किमर्थं न पिबसि । प्रभुशरणं गृहीत्वा तत्रैवस्थित्वा च ज्ञानदृशा प्रभुं पश्य, तदैव ते परमानन्दावाप्ति: स्यात् । तव सौभाग्येन प्रभुरपि तव समीपस्थ एव तिष्ठति । विशेषतस्तु तस्याष्टदलकमले हदि निवासोऽस्ति । सः प्रभुश्चतुर्दिक्षु सर्वमावृत्य तिष्ठति । अनाहतनादेन त्वं प्रभुमन्विष्यावाप्नुहि ।
उक्तं च सर्वोपनिषत्सारसंग्रहे-
अनाहतस्य शब्दस्य तस्य शब्दस्य यो ध्वनिः ।
ध्वनेरन्तर्गतं ज्योतिर्योतिषोऽन्तर्गतं मनः ॥
मनो यत्र लयं याति तद् विष्णोः परमं पदम् ।
सदा नादानुसंधानात्संक्षीणा वासना तु या ।
निरञ्जने विलीयेते मनोवायू न संशयः ॥
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हे पागल मन ! तू प्रभु को छोड़कर अन्यत्र आसक्त क्यों हो रहा है ? भक्तिरूपी अमृत का पान करके ही तू जीवित रह सकता है । अतः प्रभु का भजनरुपी अनुभव अमृत को क्यों नहीं पीता ? प्रभु के शरण जाकर वहाँ ही स्थित रहकर ज्ञान नेत्रों से उस प्रभु को देख । तब ही तुझे परमानन्द की प्राप्ति होगी । तेरे भाग्य से प्रभु भी तेरे पास ही है । विशेषरूप से वे अष्टदलकमल में विराजते हैं । वह परमात्मा तेरे को चारों तरफ से तेरे शरीर को आवृत करके रहते हैं । अनाहत नाद के द्वारा उनको खोज ।
सर्वोपनिषत्सारसंग्रह में –
अनाहत शब्द की जो ध्वनि है, उस ध्वनि के मध्य एक ज्योति है और उस ज्योति के मध्य में जब मन चला जाता है और वहीँ पर लीन हो जाता है वह ही भगवान् विष्णु का परमधाम है । निरन्तर नादानुसंधान से वासना क्षीण हो जाने के कारण मन और प्राण निरंजन ब्रह्म में लीन हो जाते हैं ।
(क्रमशः)
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