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*सहजैं ही सब होइगा, गुण इन्द्रिय का नास ।*
*दादू राम संभालतां, कटैं कर्म के पास ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ स्मरण का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*टीला लाहा आदि भक्त*
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*मूल छप्पय –*
*भरत-खंड मधि भूप द्वै,*
*टीला लाहा भक्ति के ॥*
*अंगज परमानन्द, परम भजनीक उजागर ।*
*योगीदास रु खेम, दिपत दशधा के आगर ॥*
*ध्यानदास केशो जु, गही गुरु धर्म कि टेका ।*
*हरीदास हरि भक्ति, करी अति मरम कि एका ॥*
*जन राघव रटि रामजी, काटे बन्धन शक्ति के ।*
*भरत-खंड मधि भूप द्वै,*
*टीला लाहा भक्ति के ॥२१५॥*
भरत-खंड में टीलाजी और लाहाजी दोनों भक्ति रूप भूमि के राजा हुये हैं ।
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टीलाजी ने एक संत के संकेत से बाँझ गाय का दूध निकाला था । लाहाजी गुरु जी की मानस पूजा के समय उनके मन का गोशाला में जाना जान गये थे । परमानन्दजी ने अकाल के समय लोगों को भूमि में अन्न बताया था । टीलाजी के शिष्य लाहाजी थे। इनकी शिष्य परम्परा परम प्रकट हुई है । लाहाजी के पुत्र परमानन्दजी बड़े ही भजनीक, जगत में विख्यात योगी हुये हैं । योगीदासजी और खेमदासजी बड़े प्रकाशमान अर्थात् प्रकट हुये हैं और प्रेमाभक्ति के तो मानो खानि ही थे ।
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ध्यानदासजी और केशवदासजी ने भी गुरु सेवा धर्म वा गुरुप्रदत्त उपदेश रूप धर्म का प्रण ग्रहण किया था, उस का पूर्ण रूप से निर्वाह किया है इनका हरिभक्तों में पूर्ण प्रेम था । हरीदास जी ने अति रहस्यमय एक हरि की ही भक्ति अत्यधिक की थी । उक्त सभी भक्तों ने रामनाम रटकर माया के बन्धन को काट दिया था ।
(क्रमशः)
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