रविवार, 20 फ़रवरी 2022

*२२. बेसास कौ अंग ~ ४५/४८*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२२. बेसास कौ अंग ~ ४५/४८*
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रांम नांम जीवन जड़ी, ओषदि मूली एह ।
कहि जगजीवन वैद विसंभर, अलख उबारै देह ॥४५॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि राम नाम जीवन कि सबसे बड़ी निधि है यह ही सबसे श्रेष्ठ औषधि है । इसे बताने वालै वैद्य स्वयं परमात्मा हैं जो इस देह के कल्याणकारी है ।
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औषदि मूली रांम तत, आतम अंग लगाइ ।
जगजीवन इस रोग का, बैद निरंजन राइ ॥४६॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जड़ी व औषधि सब राम नाम तत्व ही है वह स्मरण ही है जो इस आत्म को अपनाते हैं, प्रभु इस संसारिक रोग के वैद्य स्वयं निरंजन राम हैं ।
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कहि जगजीवन धनंतरि, सब बैदन गुर पीर ।
रांम भगति वेसास बिन, ता तैं डस्या सरीर ॥४७॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि महाराज धन्वंतरि जैसे सब वैद्यों के गुरु महाराज है । किंन्तु यदि उन पर विश्वास नहीं करें । तो यह देह दंशित रहेगी ऐसै ही संसारी दंशों के वैद्य प्रभु हैं जो उनपर विश्वास नहीं करेगा वह देह संसारिक दंश जैसै पाप, क्रोध, लोभ आदि दंशों से दंशित रहेगी ।
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मंत्र तंत्र बूटी जड़ी, औसदि मूली कोटि ।
कहि जगजीवन रांम बिन, अंत गई सब लोटि३ ॥४८॥
{३. लोटि=व्यर्थ(निष्फल) हो गयी}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मंत्र, तंत्र, औषधि, जड़ी-बूटी, करोड़ है पर हरि स्मरण के बिना सब व्यर्थ है ।
(क्रमशः)

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