गुरुवार, 24 फ़रवरी 2022

*परस जी खाती*

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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
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*दादू सेवक सांई वश किया, सौंप्या सब परिवार ।*
*तब साहिब सेवा करै, सेवक के दरबार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*मूल मनहर –*
*परस को पारस मिले हैं गुरु पीपा आय,*
*आप सो कियो बनाय बारंबार कसि के ।*
*खोयो है कन्या को कोढ़ धोवती दिई है ओट, *
*शकति की सेवा मेटी ताके घर वसि के ॥*
*खाती को खलास करि रीझे हैं परस परि,*
*माथे हाथ धर्यो स्वामी हेत सेती हँसि के ।*
*राघो कहै परस प्रसिद्ध भये तीनों लोक,*
*संतन की सेवा कीन्ही पूठी हरि असि के ॥२१७॥*
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परस जी खाती को पारस रूप पीपाजी आकर गुरु रूप में प्राप्त हुये थे । पीपा जी ने बारंबार साधना रूप कसौटी से कसकर अर्थात् पूर्ण रूप से परीक्षा करके परस जी को अपने समान ही कर लिया था ।
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परसजी की कन्या के कोढ़ रोग हो गया था । पीपाजी ने अपनी धोती उसे उढ़ाकर उसके शरीर का कोढ़ रोग हटा दिया था । परसजी प्रथम देवी की सेवा करते थे । पीपाजी ने उनके घर पर निवास करके देवी की सेवा छुड़ा कर उनको भगवान् का भक्त बना दिया था ।
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फिर उनकी सेवा भक्ति से प्रसन्न होकर उनके स्वामी पीपा जी ने हँसते हुये अति स्नेह से उनके शिर पर अपना वरद् हस्त धरकर उन परस जी खाती को संसार बन्धन से मुक्त कर दिया था ।
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राघवदास जी कहते हैं – गुरुदेव पीपाजी की कृपा से भक्त परसजी खाती तीनों लोकों में प्रसिद्ध हो गये हैं । परसजी अति प्रेम से संतों की सेवा में लग रहे थे । उसी समय कलरू में राजा के रथ के पैड़े की पूठी टूट गई । राजा ने परसजी को बुलाया किन्तु वे संतों की सेवा छोड़कर नहीं जा सके । तब स्वयं हरि ने ही परसजी का रूप धारण करके ऐसी एक ही पूठी लगा दी थी जिसके कहीं जोड़ भी नहीं था । 
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इससे राजा आदि सबको बड़ा आश्चर्य हुआ था । संत सेवा से निवृत्त होकर परसजी राजा के पास गये और देर होने के लिये क्षमा याचना की । राजा ने कहा – अभी तो तुम बनाकर गये हो । परसजी ने कहा – मैं सन्तों की सेवा में लगा था इससे नहीं आ सका था । यह भगवान् ने ही कृपा की है । इस प्रकार परसजी के लिये हरि ने पूठी लगाई थी ।
(क्रमशः)

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