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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२२. बेसास कौ अंग ~ ५७/६०*
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कहि जगजीवन नाउँ रत, सात द्वीप४ नौ खण्ड५ ।
पिव परचै पावन भया, इकईसौं ब्रह्मांड६ ॥५७॥
{४.सात द्वीप=१. जम्बू द्वीप, २. शाक द्वीप, ३. सूक्ष्म द्वीप, ४. क्रौच्च द्वीप, ५. गोमय द्वीप, ६. श्वेत द्वीप, एवं ७. प्लक्ष द्वीप । (द्र०=सि० सि० प०, पृ० ४८)}
{५.नौ खण्ड=१. भारतखण्ड, २.कर्परखण्ड, ३. काश्मीरखण्ड, ४. श्रीखण्ड, ५. शंखखण्ड, ६. एकपादखण्ड, ७. गान्धारखण्ड, ८.कैवर्तखण्ड, एवं ९. महामेरुखण्ड ( द्र०=सि० सि० प०, पृ० ४८)}
{६.इक्कीस ब्रह्माण्ड=१. भूलोक, २. भुवर्लोक, ४. महर्लोक, ६. जनलोक, ७. तपोलोक, ८. सत्यलोक, ९. विष्णुलोक, १०. रुद्रलोक, ११. ईश्वरलोक, १२. नीलकण्ठलोक, १३. शिवलोक, १४. भैरवलोक, १५. अनादिलोक, १६. कुललोक, १७. अकुलेशलोक, १८. परब्रह्मलोक, १९. परापरलोक, २०. शक्ति=लोक एवं सप्त पातालों का सम्मिलित २१वाँ पाताल लोक होता है । (द्र०=सि० सि० प०, पृ० ४४)}
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो स्मरण में रत है उन्हें कुछ भी कठिन नहीं हैं । सात द्वीप नो खण्ड व इक्कीस लोक जो सभी उपर्युक्त वर्णित है में वें परमात्मा से व परमात्मा स्वयं वायु सदृश सदा उनसे परिचित रहते है ।
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कहि जगजीवन रांमजी, माँगण मरण समांन ।
मरण भलो माँगण बुरो, रतन गमावै ग्यांन ॥५८॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि याचना मृत्यु तुल्य है । मांगने से तो मृत्यु भली है मांगने से आत्म रुपी हीरा हत होता है । हमारी याचना प्रभु से हो भक्ति की हो संसार से संसारिक भोगों की नहीं हो ।
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कहि जगजीवन रांमजी, एक तुम्हारी आस ।
जगजीवन की जीव थैं, दूरि करौ भ्रम पास ॥५९॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि है प्रभु सिर्फ आपसे ही आशा है और आप ही इस जीव से भ्रम रुपी बंधन दूर कर सकते हैं ।
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जाग्रित कौं ग्यांन जस्यां, तस्य नांद निरंजनं ।
जगजीवन हरि रतं, रांम अंजन नित मंजनं ॥६०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो जाग्रत है प्रभु के प्रति सचेत है उन्हें अनहद सुनाई देता है । वे प्रभु में मग्न राम नाम का काजल लगा नित्य राम नाम के स्नान से सरोबार रहते हैं ।
(क्रमशः)
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