सोमवार, 28 फ़रवरी 2022

*पृथ्वीराज की पद्य टीका*

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*दीन गरीबी गहि रह्या, गरवा गुरु गम्भीर ।*
*सूक्ष्म शीतल सुरति मति, सहज दया गुरु धीर ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ गुरुदेव का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*पृथ्वीराज की पद्य टीका*
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*इन्दव –*
*संग चल्यो गुरु के पृथ्वीराज जु,*
*प्रीति घणी रण छोड़ हि पाऊं ।*
*बात सुनि सु दिवान गयो निशि,*
*भक्ति हुई गुरु संतन गांऊं ॥*
*लेहु विचार करो तव भाव सु,*
*संग न लेवत बात दुराऊं ।*
*प्रात भये नृप आवत चाहत,*
*आप कही रहिये सुख पाऊं ॥२०४॥*
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आँमेर नरेश पृथ्वीराज अपने गुरु कृष्णदास जी पयहारी के साथ द्वारिका जाने को तैयार हो रहे थे । उनके मन में रणछोड़ जी के दर्शन करने का अति प्रेम था ।
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जब प्रधान मन्त्री ने यह सुना कि राजा गुरुजी के साथ द्वारिका जाने को तैयार हो रहे हैं, तब वह रात्रि को कृष्णदास पयहारी के पास आया और प्रार्थना की कि भगवन् ! बड़ी कठिनता से गाँव में गुरु और सन्तों की भक्ति उत्पन्न हुई है । यदि राजा आपके साथ चले जायेंगे तो, लोगों में उत्पन्न हुई भक्ति स्थिर नहीं रहेगी कारण – अभी दृढ़ नहीं हुई है ।
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आप स्वयं इस का विचार करलें फिर आपकी इच्छा हो वैसा ही करना । कृष्णदासजी पयहारी ने कहा – तुम ठीक कहते हो, मैं राजा को साथ नहीं ले जाऊंगा और तुम्हारी बात को भी छिपाऊंगा । राजा को नहीं कहूंगा कि मंत्री आपका मेरे साथ द्वारिका जाना अच्छा नहीं मानता ।
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प्रातःकाल होते ही राजा द्वारिका जाने की इच्छा से गुरुजी के पास आये किन्तु गुरुजी ने कहा – “तुम यहां ही रहो, इसी से मुझे सुख प्राप्त होगा ।”
(क्रमशः)

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