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*#पं०श्रीजगजीवनदासजीकीअनभैवाणी*
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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२२. बेसास कौ अंग ~ ६१/६४*
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जांनराइ जगदीस की, मैं बलिहारी जाऊँ ।
कहि जगजीवन बड़ै दर७, चाहूँ सो पाउँ ॥६१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि मैं उन सबके अधिपति परमात्मा जगदीश की बलिहारी जाऊँ । उनके घर का ही सबसे बड़ा दर है जहां से जो चाहे पा सकते हैं ।
(७. बड़ै दर=सम्पत्तिशाली घर का द्वार)
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नांम मिलावै रांम कूं, जे गहि द्रिढ़ वेसास ।
हरि भजि सब जन ऊधरैं, सु कहि जगजीवनदास ॥६२॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि नाम स्मरण ही प्रभु दर्शन के योग्य बनाता है । बस दृढ विश्वास होना चाहिए । संत कहते हैं कि हरि स्मरण से सब तिर जाते हैं ।
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कहि जगजीवन रांमजी, पारस नांम निवास ।
पारस लौह कंचन करै, प्रेम भगति वेसास ॥६३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि प्रभु का नाम पारस जैसा है । वह.नाम रुपी पारस प्रेम भक्ति और विश्वास होने पर हर जीवात्मा को कंचन कर देता है श्रेष्ठ बना देता है ।
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कहि जगजीवन रांमजी, कामधेनु करतार ।
अखंड धुनि अमित स्त्रवै, बछड़ा जीवै लार ॥६४॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि सबका कर्ता जो प्रभु हैं वे कामधेनु सदृश सब प्रकार से पूरणहार हैं उनसे सभी जीवों के लिये को अमृत स्त्रतवित होता रहता है । और जीव रुपी बछड़ा तृप्त होता रहता है ।
(क्रमशः)
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