शनिवार, 19 फ़रवरी 2022

*बद्ध जीव/संसारी जीव*

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*बंध्या बहुत विकार सौं, सर्व पाप का मूल ।*
*ढाहै सब आकार को, दादू येह स्थूल ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ माया का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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“जो बद्ध जीव हैं, संसारी जीव हैं, उन्हें होश नहीं रहता । वे जाल में तो पड़े हुए हैं, परन्तु यह ज्ञान नहीं है कि हम जाल में फंसे हैं । सामने भगवत्प्रसंग देखकर ये लोग वहाँ से उठकर चले जाते है, कहते हैं - 'मरने के समय रामनाम लिया जायेगा, अभी इतनी जल्दी क्या है ?' फिर मृत्युशय्या पर पड़े हुए अपनी स्त्री या लड़के से कहते हैं, 'दीपक में कई बत्तियाँ क्यों लगायी गयी हैं ? - एक बत्ती लगाओ, मुफ्त में तेल जला जा रहा है ।'
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और अपनी बीबी और बच्चों की याद कर-करके रोते हैं, कहते हैं, 'हाय ! मैं मरूंगा तो इनके लिए क्या होगा ?’ बद्ध जीव जिससे इतनी तकलीफ पाता है, वही काम फिर करता है, जैसे कँटीली डालियाँ चबाते हुए ऊँट के मुँह से धर-धर खून बहने लगता है, परन्तु वह कटीली डालियों को खाना फिर भी नहीं छोड़ता ।
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इधर लड़का मर गया है, शोक से विह्वल हो रहा है, फिर भी हर साल बच्चों की पैदाइश में घाटा नहीं होता, लड़की के विवाह में सिर के बाल भी बिक गये; परन्तु हर साल लड़के और लड़कियों की हाजिरी में कमी नहीं होती; कहता है, 'क्या करूँ, भाग्य में ऐसा ही था ।’ अगर तीर्थ करने के लिए जाता है, तो स्वयं कभी ईश्वर की चिन्ता नहीं करता, न समय मिलता है - समय तो बीबी की पोटली ढोते ढोते पार हो जाता है, ठाकुरमन्दिर में जाकर बच्चे को चरणामृत पिलाने और देवता के सामने लोटपोट कराने में ही व्यस्त रहता है ।
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बद्ध जीव अपने और अपने परिवार के पेट पालने के लिए ही दासत्व करता है, और झूठ, वंचना एवं खुशामद करके धनोपार्जन करता है । जो लोग ईश्वर की चिन्ता करते हैं, ईश्वर के ध्यान में मग्न रहते हैं, उन्हें बद्ध जीव पागल कहते हैं और इस तरह उन्हें चुटकियों में उड़ाया करते हैं । देखो, आदमी कितनी तरह के हैं । तुमने सब को बराबर बतलाया था । देखो, कितनी भिन्न-भिन्न प्रकृतियाँ हैं । किसी में शक्ति अधिक है, किसी में कम ।
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“संसार में फँसा हुआ जीव मृत्यु के समय संसार की ही बातें कहता है । बाहर माला जपने, गंगा नहाने और तीर्थ जाने से क्या होता है ? संसार की आसक्ति के रहने पर, मृत्यु के समय वह दीख पड़ती है । न जाने कितनी वाहियात बातें बकता रहता है । कभी-कभी सन्निपात में ‘हलदी, मसाला, धनियाँ' कहकर चिल्ला उठता है ।
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तोता जब भलाचंगा रहता है तब राम राम कहता है, जब बिल्ली पकड़ती है तो अपनी बोली में 'टें-टें' करता है । गीता में लिखा है, मृत्यु के समय जो कुछ सोचोगे, दूसरे जन्म में वही होंगे । राजा भरत ने 'हरिण-हरिण' कहकर देह छोड़ी थी, दूसरे जन्म में वे हरिण ही हुए थे । ईश्वर की चिन्ता करके देह का त्याग करने पर ईश्वर की प्राप्ति होती है । फिर इस संसार में नहीं आना पड़ता ।"
(क्रमशः)

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