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*साचे को साचा कहै, झूठे को झूठा ।*
*दादू दुविधा को नहीं, ज्यों था त्यों दीठा ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥भेष भक्ति॥*
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*॥ भेष भक्त की भेष में महान् प्रीती ॥*
भेष भक्त की भेष में, होती अति अनुरक्ति ।
मधुकरशाह ने गधे की, पूजा की सहभक्ति ॥२२७॥
दृष्टांत कथा - ओड़छे के राजा मधुकरशाह की साधू भेष में बड़ी प्रीति थी । वे सन्तों का चरणामृत लेते थे, पूजा परिक्रमा करते थे । राजा के भाई बन्धुवों को यह अच्छा नहीं लगता था । एक दिन उन्होंने एक गधे को बहुत-सी मालाएं पहना कर तथा तिलक लगा कर महल में भेज दिया ।
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राजा ने उसके चरण धोये, पूजा परिक्रमा की और बोले - 'मैं धन्य हूं जो मेरे राज्य में गधे भी भक्त बन कर माला तिलक करने लगे हैं । जो माला तिलक नहीं धारण करते वे गधों से भी बुरे हैं यह देख सुन कर दुष्टों को बड़ी लज्जा आई । इससे सूचित होता है कि भेष भक्त की भेष में बड़ी प्रीति होती है ।
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