मंगलवार, 22 फ़रवरी 2022

*२२. बेसास कौ अंग ~ ४९/५२*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२२. बेसास कौ अंग ~ ४९/५२*
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वैद धनंतर४ महागुनी, महापात्र महा ग्यांन ।
कहि जगजीवन देव गति, बरिया५ चल्यां न पान ॥४९॥
{४. धनंतर=धन्वन्तर(देवताओं के वैद्य)} (५. बरियाँ=अवसर)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वैद्य धन्वंतरि बहुत चतुर गुणवान, यौग्य व महाज्ञानी है । किन्तु परमात्मा की गति के आगे उनकी भी एक नहीं चलती वे पत्ता भी नहीं चला सकते हैं ।
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कोटि सक्ति अरु कोटि गुण, कोटि बुद्धि किंहि कांम ।
कहि जगजीवन राखि चित, जे रसनां रट्या न रांम ॥५०॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि करोड़ों की शक्ति करोड़ गुणों का वास ये सब व्यर्थ है चाहे करोड़ों की बुद्धि ही क्यों न हो । अगर मन चित से स्मरण नहीं किया तो सब बेकार है ।
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कहि जगजीवन अमर हरि, अमर रांम का नांम ।
अमर साध अबिगति सरण, निरभै निहचल ठांम ॥५१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि हरि और हरिनाम ही अमर है । और उन अविगत परमात्मा की शरण से सभी साधु जन निर्भय निश्चल हैं ।
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भ्रम-मत६ तजि, हरि माँहि रहि, देख तमासा एह ।
कहि जगजीवन रांम घर, मांग्यां बरषै मेह ॥५२॥
(६. भ्रम=मत=भ्रान्ति कारक सिद्धान्त)
संतजगजीवन अति आनंद अवस्था का वर्णन कह रहे हैं कि सारे भ्रम संशय दूर कर हरि जी की आज्ञा में रहें तो फिर आनंद का पार ही नहीं है । जो चाहो मिलता है यहां तक की वर्षा की कामना करें तो वह भी आती है ।
(क्रमशः)

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