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*पीड़ पुराणी ना पड़ै, जे अन्तर बेध्या होइ ।*
*दादू जीवण मरण लौं, पड़या पुकारै सोइ ॥*
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साभार विद्युत् संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
साभार ~ ### स्वामी श्री नारायणदासजी महाराज, पुष्कर, अजमेर ###
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श्री दृष्टान्त सुधा - सिन्धु --- *॥गुरु भक्ति॥*
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*॥ गुरु भक्तों को गुरु वियोग असह्य ॥*
गुरु भक्तन को, गुरुन का, असह्य होत वियोग ।
गुफा द्वार लख दादु को, विकल भये शिष लोग ॥२३८॥
दृष्टांत कथा - सन्तवर दादूजी का देहान्त होने पर देह को विमान पर बैठा कर भैराणे पर्वत पर ले गये । वहां विमान रखकर के देह के संस्कार के विषय में विचार कर रहे ते कि दादूजी के शिष्य टीलाजी ने दादूजी को पर्वत के मध्य की गुफा के द्वार पर खड़े देख करके कहा - 'स्वामीजी तो गुफा के द्वार पर खड़े हैं ।' विमान को देखा तो उसमें देह के स्थान पर पुष्प राशि पड़ी थी । यह देख कर गुरु भक्त वे शिष्य लोग अपने गुरु वियोग से प्रायः विकल से हो गये थे । इससे सूचित होता है कि गुरु भक्तों कों गुरु वियोग असह्य होता है ।
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