बुधवार, 2 मार्च 2022

*चतुर जवाबी का अंग १८४(१/४)*

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*दादू कर सांई की चाकरी, ये हरि नाम न छोड़ ।*
*जाना है उस देश को, प्रीति पिया सौं जोड़ ॥*
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टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*चतुर जवाबी का अंग १८४*
इस अंग में चतुर पुरुषों के उत्तर तथा चार चार बातें दिखा रहे हैं ~
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रज्जब धर्म शास्त्र दिल गया, वैद्यक अल्प अहार ।
कोक शस्त्र कामिनी कथा, लेखा यहु सुलझार१ ॥१॥
थर्म शास्त्र में दया मुख्य है । आयुर्वेद में अल्पाहार करने की बात मुख्य है । कोक शास्त्र में नारी कथा मुख्य है । गणित में हिसाब सुलझाना१ मुख्य है । यह चार उत्तर हैं ।
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दर्द बिना दरवेश१ क्या, पीर२ बिना क्या पीर ।
धर्म बिना धर्मी नहीं, अपढ न बावनवीर३ ॥२॥
प्रभु की वियोग व्यथा के बिना संत१ में संतता क्या ? साधन की पीड़ा के बिना सिद्ध२ क्या है, धर्म बिना धर्मात्मा नहीं होता । शास्त्र कला और युद्ध नीति पढे बिना महान् शूरवीर३ नहीं होता ।
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गुरु गोविन्द साधू शबद, गुण गंजन गुण एक ।
जन रज्जब देखे सुने, पातक कटैं अनेक ॥३॥
गुरु गोविन्द संत और इनका शब्द, इन चारों में दुर्गणों का नष्ट करने वाला एक महान् सदगुण रहता है । गुरु गोविन्द तथा संतों के दर्शन करने से और इनके शब्द सुनने से अनेक पाप कटते हैं ।
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रज्जब नीति नराधिपति, जतिहिं जत१ मत२ जाप ।
पुनि सुकृत सु प्रजा करै, सौ सुख पावहिं आप ॥४॥
राजनीति में निपुण राजा, ब्रह्मचर्य१ और विचार२ से युक्त यति, हरि नाम जप में संलग्न भक्त और सुकृत करने वाले प्रजाजन होते हैं वे अनेक कर्मानुसार स्वयं ही सुख प्राप्त करते हैं ।
(क्रमशः)

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