रविवार, 10 अप्रैल 2022

शब्दस्कन्ध ~ पद #.१८०

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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१८०)*
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*१८०. परिचय विनती राज । विद्याधर ताल*
*हरि नाम देहु निरंजन तेरा, हरि हर्ष जपै जिय मेरा ॥टेक॥*
*भाव भक्ति हेत हरि दीजे, प्रेम उमंग मन आवे ।*
*कोमल वचन दीनता दीजे, राम रसायन भावे ॥१॥*
*विरह बैराग्य प्रीति मोहि दीजे, हृदय सांच सत भाखूं ।*
*चित चरणों चिंतामणि दीजे, अंतर दिढ़ कर राखूं ॥२॥*
*सहज सील सब दीजे, मन निश्‍चल तुम्ह लागे ।*
*चेतन चिंतन सदा निवासी, संग तुम्हारे जागे ॥३॥*
*ज्ञान ध्यान मोहन मोहि दीजे, सुरति सदा सँग तेरे ।*
*दीन दयाल दादू को दीजे, परम ज्योति घट मेरे ॥४॥*
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भादी०- हे निरंजन राम ! तव नामधेयं मह्यं त्वं प्रयच्छ । येन मम मनो हर्षितं सत्त्वन्नामधेयं जपेत् । हे हरे ! प्रेमभक्तिं तद्भावञ्च मह्यं देहि । मम मन: प्रेमलहर्यासक्तं भवेत् । कोमलं मधुरं वचनं दैन्यं रामरसायनं विरहं वैराग्यं प्रीति सत्यभाषणं हृदये सत्यानुसंधानं नाम चिन्तनरूपचिन्तामणि दृढधारणाञ्च देहि । स्वाभाविकशीलसंतोषादिगुणान् प्रददस्व । निर्मलं निश्चलं मनस्तव चिन्तने रमताम् । त्वय्येव सततं निवसेत् । हे विश्वविमोहन ! तवानुध्यानेन मम मनसि त्वज्ञानज्योतिरुदेतु । मम मनोवृत्तिरपि त्वया सह सततं रमताम् । हे दीनदयालो ! ममान्तःकरणे तव स्वरूपप्रकाशो विलसतुतराम् ।
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हे निरंजन राम ! आपका नाम मुझे दीजिये । जिससे मेरा मन प्रसन्न होकर उस नाम को जपे । हे हरे ! आप प्रेमाभक्ति तथा श्रद्धाभाव मेरे को दीजिये । मेरा मन प्रेम की लहरों में आसक्त हो जाय, ऐसी कृपा कीजिये । कोमल वचन दीनता रामरसायन विरह वैराग्य प्रेम सत्यभाषण और उनको हृदय में धारण करने की क्षमता तथा चित्त आपके चरणों में ही रहे ।
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हृदय में नाम का चिन्तन रूप चिन्तामणि है, वह मुझे दीजिये । स्वाभाविक शील, संतोष आदि गुणों को दीजिये । मेरा मन निश्चल होकर आप में ही रमता रहे । तेरे में ही उस मन का निवास हो । हे विश्वविमोहन ! आपके ध्यान से मेरे मन की वृत्ति भी आप में ही रमण करती रहे । हे दीनदयालो ! मेरे अन्तःकरण में आपकी स्वरूप-ज्योति चमकती रहे ।
(क्रमशः)

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