🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*दादू गुप्त गुण परगट करै, परगट गुप्त समाइ ।*
*पलक मांहि भानै घड़ै, ताकी लखी न जाइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
===========
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*तीन हुये सुत दीरघ ज्ञान हि,*
*देव भजैं हरि प्रीति लगाईं ।*
*कोउ पढावत नांहिं सु वेदन,*
*विप्र करे इकठे किमि भाई ॥*
*ब्राह्मण को अधिकार कहे श्रुति,*
*भैंसन को पढ़ तेहु सुनायी ।*
*भक्ति हि शक्ति निहारि सबै द्विज,*
*पाँव लिये अरु देत बड़ाई ॥२१३॥*
.
विट्ठलपन्त के तीन पुत्र हुये थे, उनमें योग्यता की दृष्टि से ज्ञानदेव ही बड़े थे । आप दृढ़ प्रीति लगाकर हरि का भजन करते थे ।
.
इनको कोई भी वेद नहीं पढ़ाता था तब आपने ब्राह्मणों को एकत्र करके पूछा – आप लोग हमें वेद क्यों नहीं पढ़ाते हो ?
.
ब्राह्मणों ने कहा – वेद पढने का अधिकार श्रुति ब्राह्मण का ही बताती है । ज्ञानदेव ने एक भैंसे को खड़ा देखकर कहा – वेद तो यह भैंसा भी पढ़ सकता है । ब्राह्मणों ने कहा – पढ़ाओ । ज्ञानदेव ने भैंसे की पीठ पर ज्यूं ही हाथ रक्खा कि वह मानव के समान वेद मंत्र उच्चारण करने लगा ।
.
तब ज्ञानदेव की भक्ति की शक्ति की ओर देखकर सब ब्राह्मण उनके चरण छू कर उनकी बड़ाई करने लगे ।
.
*विशेष कथा –*
ज्ञानदेव आदि बालक थे तब ही इनका माता पिता से वियोग हो गया था । चारों भाई-बहिन कच्चा अन्न भिक्षा में लाकर उससे अपना निर्वाह करते हुये सदा भगवद्भजन, भगवत् कथा – कीर्तन में ही अपना समय व्यतीत करते थे ।
.
आलन्दी के ब्राह्मण वैसे तो इनको अच्छा मानते थे किन्तु संन्यासी के लड़के जानकर उपनयन नहीं कराते थे । उन लोगों ने कहा – तुम पैठण जाओ । वहां के विद्वान तुम्हारे उपनयन की व्यवस्था दे देंगे तो हम भी मान लेंगे ।
.
ये लोग पैदल ही भगवन्नाम कीर्तन कराते हुये पैठण पहुँचे । इनके लिये ब्राह्मणों की सभा हुई । सभा में निश्चय हुआ कि इनकी शुद्धि भगवान् की अनन्य भक्ति से ही हो सकती है । इस निर्णय से चारों भाई-बहिन संतुष्ट हो गये । वहां से ये लोग लौटने ही वाले थे कि दुष्टों ने इनसे छेड़ छाड़ आरम्भ करदी ।
.
एक ने ज्ञानदेव से पूछा – तुम्हारा नाम क्या है ? उत्तर – ज्ञानदेव । उसके पास खड़े हुये एक भैंसे की ओर संकेत करके कहा – यहां तो यह ज्ञानदेव है, ऐसे ही ज्ञानदेव तुम हो क्या ? ज्ञानदेव ने कहा – हाँ यह मेरी ही आत्मा है ।
.
यह सुनकर एक ने भैंसे के कुछ साँटों की(पतली लकड़ी वा कोड़े) मार के कहा – यह तुम्हारी आत्मा है तो ये साँटें भी तुम्हारे लगी होंगी ? ज्ञानदेव ने हाँ कहकर अपना शरीर दिखाया, उस पर साँटें उठी हुई थीं । एक ब्राह्मण ने कहा – यदि भैंसा तुम्हारे जैसा है तो तुम्हारी जैसी ज्ञान की बातें भी इससे कहलाओ ।
.
ज्ञानदेव ने भैंसे की पीठ पर हाथ रक्खा कि यह ओ३म् का उच्चारण करके वेद मंत्र बोलने लगा यह देखकर पैठण के विद्वान ब्राह्मण चकित होकर उनकी चरण वन्दना करते हुये जय ध्वनि करने लगे । एक दिन एक ब्राह्मण के घर श्राद्ध के समय उसके पितरों को सशरीर ज्ञानदेवजी ने बुला लिया था ।
.
इत्याधिक विशेषतायें देखकर पैठण के धर्मज्ञ ब्राह्मणों ने नम्रता पूर्वक इनको शुद्धि पत्र लिख दिया । पीछे कुछ समय चारों भाई-बहिन वहां रहे । ज्ञानदेव ने वहां कुछ ग्रंथ भी पढ़ लिये और आगे ग्रंथ लिखने की भूमिका भी तैयार करली । फिर शुद्धि पत्र तथा वेद मंत्र पढ़ने वाले भैंसे को साथ लेकर वहां से आलें नामक स्थान पर आये । वहां भैंसे को समाधि दे दी और आप लोग नेवासे पहुँचे ।
.
नेवासे में ही ज्ञानेश्वरी गीता भाष्य कहा, जिसे सच्चिदानन्दजी ने लिखा । फिर आलन्दी आये । आलन्दी में इसबार इनका बड़ा आदर हुआ । फिर वे चारों नेवासे लौट आये । अब निवृत्तिनाथ १७, ज्ञानदेव १५, सोपानदेव १३, और मुक्ता ११ वर्ष की हो गई थी । सं. १३४७ में ज्ञानेश्वरी ग्रंथ पूर्ण हुआ था ।
.
फिर अनेक संतों के साथ आपने तीर्थयात्रा की और चांगदेव जैसे योगियों को उपदेश दिया । इक्कीस वर्ष तीन मास पांच दिन की अल्पावस्था में ही सं. १३५३ मार्ग शीर्ष कृष्णा १३ को ज्ञानदेव जी ने जीवित समाधि लेली । उनके समाधि लेने के पश्चात् एक ही वर्ष के भीतर - सोपान देव, मुक्ता बाई और निवृत्तिनाथ भी एक एक करके परमधाम को पधार गये ।
.
ज्ञानदेवजी के चार ग्रंथ हैं – १. भावार्थदीपिका(ज्ञानेश्वरी गीता), २. अमृतानुभव, ३. हरि पाठ के अभंग, ४. चांगदेव पैसठी । इनके अतिरिक्त उन्होंने योगवासिष्ठ पर एक अभंग वृत्त की टीका भी लिखी थी सो अभी तक उपलब्ध नहीं हो सकी है ।
(क्रमशः)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें