रविवार, 10 अप्रैल 2022

केशव सेन

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*ज्यों रसिया रस पीवतां, आपा भूलै और ।*
*यों दादू रह गया एक रस, पीवत पीवत ठौर ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ परिचय का अंग)*
===============
साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
.
"उसके दूसरे ही दिन सेजोबाबू के पास देवेन्द्र की चिट्ठी आयी - मुझे उत्सव देखने के लिए जाने से उन्होंने रोका था । लिखा था, देह पर एक चद्दर भी न रहेगी तो असभ्यता होगी । (सब हँसते हैं ।)
(महिमा से) “एक और है – कप्तान । संसारी तो है परन्तु बड़ा भक्त है । तुम उससे मिलना । “कप्तान को वेद, वेदान्त, गीता, भागवत, यह सब कण्ठाग्र याद है । तुम बातचीत करके देखना ।
.
“बड़ी भक्ति है । मैं वराहनगर की राह से जा रहा था, वह मेरे ऊपर छाता लगाता था । अपने घर ले जाकर बड़ी खातिर की । - पंखा झलता था, पैर दबाता था और कितनी ही तरह की तरकारियाँ बना कर खिलाता था । मैं एक दिन उसके यहाँ पाखाने में बेहोश हो गया । वह इतना आचारी तो है, परन्तु पाखाने के भीतर मेरे पास जाकर मेरे पैर फैलाकर मुझे बैठा दिया । इतना आचारी है, परन्तु घृणा नहीं की ।
.
"कप्तान के पल्ले बड़ा खर्च है । उसके भाई बनारस में रहते हैं, उन्हें खर्च देना पड़ता है । उसकी बीबी पहले बड़ी कंजूस थी । अब इतनी पलट गयी है कि खर्च सँभाल नहीं सकती ।
"कप्तान की स्त्री ने मुझसे कहा, ‘इन्हें संसार अच्छा नहीं लगता, इसलिए एक बार इन्होंने कहा था कि संसार छोड़ दूंगा ।' हाँ, वह ऐसा बराबर कहा करता है ।
.
"उसका वंश ही भक्त है । उसका बाप लड़ाई में जाया करता था, मैंने सुना है लड़ाई के समय वह एक हाथ से शिव की पूजा करता था और दूसरे से तलवार चलाता था ।
.
"बड़ा आचारी आदमी है । मैं केशव सेन के पास जाता था, इसीलिए इधर महीने भर से नहीं आया । कहता है, 'केशव सेन के आचार भ्रष्ट हैं - अंग्रेजों के साथ भोजन करता है, उसने दूसरी जाति में अपनी लड़की का विवाह किया है, उसकी कोई जाति नहीं है ।'
.
मैंने कहा, 'मुझे उन सब बातों से क्या काम ? केशव सेन ईश्वर का नाम लेता है, इसलिए मैं उसे देखने जाया करता हूँ । ईश्वर की बातें सुनने के लिए वहाँ जाता हूँ - मैं बेर खाता हूँ, काँटों से मुझे क्या काम ?" फिर भी मुझे कप्तान ने न छोड़ा । कहा, 'तुम केशव सेन के यहाँ क्यों जाते हो ?'
.
तब मैंने कुछ चिढ़कर कहा, 'मैं रुपयों के लिए तो जाता नहीं - मैं ईश्वर का नाम सुनने के लिए जाया करता हूँ - और तुम लाट साहब के यहाँ कैसे जाया करते हो ? वे म्लेच्छ हैं । उनके साथ कैसे रहते हो ?' यह सब कहने के बाद कहीं वह रुका ।
.
"परन्तु उसमें बड़ी भक्ति है । जब पूजा करता है, तब कपूर की आरती करता है और पूजा करते हुए आसन पर बैठकर स्तवपाठ करता है । तब वह एक दूसरा ही आदमी रहता है, मानो तन्मय हो जाता है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें