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🌷 *#श्रीरामकृष्ण०वचनामृत* 🌷
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*रूख वृक्ष वनराइ सब, चंदन पासैं होइ ।*
*दादू बास लगाइ कर, किये सुगन्धे सोइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ साधु का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(५) निर्लिप्त संसारी*
श्रीयुत महिमाचरण आदि भक्तगण बैठे हुए श्रीरामकृष्ण के मधुर वचनामृत का पान कर रहे हैं । बातें क्या हैं, अनेक वर्णों के रत्न हैं । जिससे जितना हो सकता है, वह उतना ही संग्रह कर रहा है । अंचल भर गया है, इतना भारी हो रहा है कि उठाया नहीं जाता । छोटे छोटे आधारों से और अधिक धारणा नहीं होती ।
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सृष्टि से लेकर आज तक मनुष्यों के हृदय में जितनी समस्याओं का उद्भव हुआ है, सब की पूर्ति हो रही है । पद्मलोचन, नारायण शास्त्री, गौरी पण्डित, दयानन्द सरस्वती आदि शास्त्रवेत्ता पण्डितों को आश्चर्य हो रहा है ।
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दयानन्दजी ने जब श्रीरामकृष्ण और उनकी समाधि अवस्था को देखा था, तब उन्होंने उसे लक्ष्य करते हुए कहा था, "हम लोगों ने इतना वेद और वेदान्त पढ़ा, परन्तु उसका फल इस महापुरुष में ही नजर आया । इन्हें देखकर प्रमाण मिला कि सब पण्डितगण शास्त्रों का मन्थन कर केवल उसका मट्ठा पीते हैं; मक्खन तो ऐसे ही महापुरुष खाया करते हैं ।"
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उधर अंग्रेजी के उपासक केशवचन्द्र सेन जैसे पण्डितों को भी आश्चर्य हुआ है । वे सोचते हैं, “कितने आश्चर्य की बात है, एक निरक्षर मनुष्य ये सब बातें कैसे कह रहा है ? यह तो बिलकुल मानो ईसा की बातें हैं, वही ग्रामीण भाषा, उसी तरह कहानियों में समझाना जिससे स्त्रीपुरुष, बच्चे, सब लोग आसानी से समझ सकें ।
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ईसा पिता-पिता कहकर पागल हुए थे, ये 'माँ-माँ' कहकर पागल हुए हैं । केवल ज्ञान का भण्डार नहीं, ईश्वर-प्रेम की अविरल वर्षा हो रही है, फिर भी उसकी समाप्ति नहीं होती । ये भी ईसा की तरह त्यागी हैं, उन्हीं के जैसा अटल विश्वास इनमें भी मिल रहा है, इसलिए तो इनकी बातों में इतना बल है ।
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संसारी आदमियों के कहने पर इतना बल नहीं आ सकता, क्योंकि वे त्यागी नहीं हैं, उनमें वह प्रगाढ़ विश्वास कहाँ ?" केशव सेन जैसे पण्डित भी यह सोचते हैं कि इस निरक्षर आदमी में इतना उदार भाव कैसे आया ? कितने आश्चर्य की बात है, इनमें किसी तरह का द्वेषभाव नहीं । ये सब धर्मों के मनुष्यों का आदर करते हैं - इसीसे वैमनस्य नहीं होता ।
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आज महिमाचरण के साथ श्रीरामकृष्ण की बातचीत सुनकर कोई कोई भक्त सोचते है - 'श्रीरामकृष्ण ने तो संसार का त्याग करने के लिए कहा नहीं, बल्कि कहते हैं, संसार किला है, किले में रहकर काम, क्रोध आदि के साथ लड़ाई करने में सुविधा होती है । फिर उन्होंने कहा, जेल से निकलकर क्लर्क अपना ही काम फिर करता है; इससे एक तरह यही बात कही गयी कि जीवन्मुक्त संसार में भी रह सकता है ।
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परन्तु एक बात है, श्रीरामकृष्ण कहते हैं, कभी कभी एकान्त में रहना चाहिए । पौधे को घेरना चाहिए । जब वह बड़ा हो जायेगा, तब उसे घेरने की जरूरत न रह जायेगी, तब हाथी बाँध देने से भी वह उसका कुछ कर नहीं सकता । निर्जन में रहकर भक्तिलाभ या ज्ञानलाभ करने के पश्चात् संसार में रहने से भी फिर भय की कोई बात नहीं रह जाती ।
(क्रमशः)

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