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🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
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भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१८२)*
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*१८२. हितोपदेश । त्रिताल*
*हरि के चरण पकर मन मेरा, यहु अविनाशी घर तेरा ॥टेक॥*
*जब चरण कमल रज पावै, तब काल व्याल बौरावै ।*
*तब त्रिविध ताप तन नाशै, तब सुख की राशि विलासै ॥१॥*
*जब चरण कमल चित लागै, तब माथै मीच न जागै ।*
*तब जनम जरा सब क्षीना, तब पद पावन उर लीना ॥२॥*
*जब चरण कमल रस पीवै, तब माया न व्यापै जीवै ।*
*तब भरम करम भय भाजै, तब तीनों लोक विराजै ॥३॥*
*जब चरण कमल रुचि तेरी, तब चार पदारथ चेरी ।*
*तब दादू और न बांछै, जब मन लागै सांचै ॥४॥*
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भादी०- भक्तानां प्रभुचरणारविन्देऽभयं शरणपस्ति । प्रभुचरणशरणग्रहणाद् भक्तेभ्यः कालव्यालोऽपि विभेति । त्रिविधतापा नश्यन्ति तेषाम्, परमानन्दच्च प्राप्नुवन्ति भक्ताः । यदा हि भक्तानां मनः प्रभुचरणकमललीनं भवति तदा तं भक्तं मृत्युरपि हन्तुं न प्रभवति । प्रभुचरणकमले लीने सति जन्मजरादिव्याधयोऽपि न व्याप्नुवन्ति । शारीरिका दोषा अपि विनश्यन्ति । मायाऽपि तिरोभवति । भयं भ्रम: कर्मबन्धनानि च स्वत एव निर्भिद्यन्ते । स च साधकस्त्रिषुलोकेषु पूज्यते । धर्मार्थकाम- मोक्षादयोऽपि दासा इव तमनुवर्तन्ते ।
उक्तं हि शिवताण्डवस्रोत्रे-
यः शम्भुपूजनमिदं पठति प्रदोघे तस्य स्थिरां ।
रथगजेन्द्रतुरगयुक्तां लक्ष्मी सदैव सुमुखीं प्रददाति शम्भुः ॥
वेदव्यासोऽप्याह-
विद्यां श्रियं विपुलसौख्यमनन्तकीर्ति संप्राप्य देहविलये लभते च मोक्षम् ।
सर्वपापविनिर्मुक्तो जायते नात्र संशयः ॥
श्रीमद्भागवतेऽपि-
रामनामजपतां कुतो भयं सर्वतापशमनैकभेषजम् ।
पश्य तात मम गात्रसन्निधौ पावकोऽपि सलिलायतेऽधुना ॥
भागवते-
यदा ग्रहगस्त इव क्वचिद् हसत्याक्रन्दते ध्यायति वन्दते जनम् ।
मुहुः श्वसन् वक्ति हरे जगत्पते नारायणेत्यात्ममतिर्गतत्रयः ॥
तदा पुमान् मुक्तसमस्तबन्धनस्तद्भावभावानुकृताशयाकृतिः ।
निर्दग्धबीजानुशयो महीयसा भक्तिप्रयोगेण समेत्यधोक्षजम् ॥
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भक्त का प्रभुचरण कमल ही वास्तविक घर माना गया है । जब भक्त प्रभु के चरण-कमलों की रज की शरण में चला जाता है, तब उस भक्त को कालरुपी सांप भी नहीं खा सकता है । उसके त्रिविध ताप नष्ट हो जाते हैं तथा उसको परमानन्द मिल जाता है ।
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जब भक्त मन प्रभुचरण कमलों में रमता रहता है, तब मृत्यु भी उसको मारने में समर्थ नहीं होती । प्रभु के चरण-कमलों में मन के लीन हो जाने पर जन्म-जरा आदि शारीरिक दोष भी कभी उसको व्याप्त नहीं होते । भय, भ्रम, कर्मबन्धन ये स्वयं ही निवृत्त हो जाते हैं । धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष ये चारों पदार्थ भी भक्त के चरणों में सेवा के लिये दासी की तरह रहते हैं ।
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शिवताण्डवस्तोत्र में लिखा है कि –
जो प्रदोष काल में इस शम्भु-स्तोत्र को पढ़ता है, उसको शम्भु भगवान् हाथी, घोड़े, रथ आदि से भरी हुई स्थिर लक्ष्मी को देते हैं ।
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श्रीवेदव्यास जी भी लिख रहे हैं कि –
जो भगवान् को भजता है, वह विद्या, लक्ष्मी और विपुल सुख को प्राप्त हो जाता है तथा निःसंदेह सब पापों से मुक्त हो जाता है ।
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तापों की निवृत्ति का जो साधन राम-नाम है, उसको जो जपता है तो उसको कहीं भी भय नहीं होता । जैसे – प्रहलाद जी कहते हैं कि देखो जो यह अग्नि मेरे शरीर के निकट है, वह पानी की तरह शीतल हो गई ।
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जिस समय ग्रहग्रस्त पागल की तरह कभी हंसता है, कभी क्रन्दन करने लगता है, कभी ध्यान, कभी लोगों की वन्दना करने लगता है, तब वह भक्त भगवान् में मस्त हो जाता है ।
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लम्बे-लम्बे श्वास बार-बार लेता है, और संकोच को त्यागकर – हे हरे, हे जगत्पते नारायण ! कहकर पुकारने लगता है, तब भक्ति के महान् प्रताप से उसके सारे बन्धन कट जाते हैं । उस समय उसके जन्म-मृत्यु का मूल बीज ही जल जाता है और वह भक्त भगवान् को प्राप्त कर लेता है ।
(क्रमशः)
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