शनिवार, 16 अप्रैल 2022

*पुस्तक नामा का अंग १९३(१-३)*

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*दादू राम रसायन भर धर्या, साधुन शब्द मंझार ।*
*कोई पारखि पीवै प्रीति सौं, समझै शब्द विचार ॥*
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टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*पुस्तक नामा का अंग १९३*
इस अंग में पूर्व लिखित पुस्तक का नाम और विशेषतायें दिखा रहे हैं ~
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संदेह सत्र१ सत्य शास्त्र, आशंका२ अभिनाश३ ।
जगत गुरु जग योग मत, परम तत्व प्रकाश४ ॥१॥
इस पुस्तक में - यज्ञ१, गृह१, धन२, संबन्धी संशय और हृदय की शंका२ को नाश३ करने वाली सामग्री है तथा जगत् गुरु परमेश्वर संबन्धी विचार हैं । जगत् संबन्धी विचार हैं । ये मत और परम तत्त्व की प्रगटता के विचार हैं अत: इसका नाम सत्य शास्त्र है ।
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खानि पंचमी अमर फल, आतम ब्रह्म दलाल ।
अंतक इन्द्री अघनि के, प्राण हु के प्रतिपाल ॥२॥
यह पंचम खानि संतों से प्राप्त हुआ है - मुक्ति रूप अमरता को देने वाला अमर फल है । जीवात्मा और ब्रह्म के बीच में दलाल है । इन्द्रियों की चपलता और पापों का नाशक है तथा शिक्षा द्वारा प्राणियों का रक्षक है ।
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तलब१ तसल्ली२ तालिबा३, चि४ गुफतम५ औसाफ६ ।
रज्जब सैर७ समुद्र है, मसल८ सि११ खुरद९ मुसाफ१० ॥३॥
यह जिज्ञासुओं३ की आवश्कता१ को पूर्ण करके उन्हें संतोष२ देने वाला है । इसमें कल्याण प्रद बात-चीत५ रूप रत्न६ लोकाक्ति८ आदि बहुत४ हैं । यह आनन्द७ का समुद्र है तथा साधक मित्रों१० के संसार प्रपंच को छोटा९ करने वाला है ।
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इति श्री रज्जब गिरार्थ प्रकाशिका सहित पुस्तक नामा का अंग १९३ समाप्तः ॥सा. ५३४२॥
इति श्री पूज्य चरण स्वामी धनाराम शिष्य स्वामी नारायणदास कृत श्री रज्जब
गिरार्थ प्रकाशित सहित रज्जबवाणी साखी भाग समाप्त: ।
(क्रमशः)

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