शनिवार, 2 अप्रैल 2022

*अथ विष्णु स्वामी संप्रदाय*

🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
🌷🙏🇮🇳 *#भक्तमाल* 🇮🇳🙏🌷
https://www.facebook.com/DADUVANI
*जे जन तेरे रंग रंगे, दूजा रंग नांही ।*
*जन्म सुफल कर लीजिये, दादू उन मांहीं ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ पद्यांश. १९९)*
===========
*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
.
*अथ विष्णु स्वामी संप्रदाय*
.
*मूल छप्पय –*
*क्यों कर वरणूं आदि घर,*
*खबर न एको अंक की ॥*
*विष्णु स्वामि शंभु मतो,*
*मन वच कर्म करि धारयो् ।*
*भाव भक्ति भगवंत,*
*भज यश जग मधि विस्तारयो् ॥*
*पैड़ी-बन्ध प्रवाह,*
*घणो घट से घट सीझे ।*
*खुली मुक्ति की पौरि,*
*जासु गुरु गोविंद रीझे ॥*
*रघवा रवा न पहुँच ही,*
*किती अकल मुझ रंक की ।*
*क्यों कर वरणूं आदि घर,*
*खबर न एको अंक की ॥२२४॥*
.
मैं विष्णु स्वामी के परमेश्वर रूप आदि घर को प्राप्त करने की प्रणाली के ज्ञान का एक अक्षर भी नहीं जानता हूँ, फिर पूर्ण रूप से तो कैसे उसका वर्णन कर सकता हूँ ? किन्तु जितना वर्णन कर सकता हूँ, उतना ही करके संतोष करूंगा ।
.
विष्णु स्वामी ने मन वचन कर्म से भगवान् शंकरजी का सिद्धांत धारण किया था । भाव भक्ति से भगवान् का भजन करके जगत में अपने सुयश का विस्तार किया था ।
.
आपकी प्रणाली प्रबन्ध का प्रवाह अत्यधिक चला था और उसके द्वारा एक शरीर से दूसरा शरीर शिक्षा प्राप्त करके सिद्धावस्था को प्राप्त होते रहे थे । जिससे गुरु और गोविन्द दोनों ही प्रसन्न हों ऐसी ही इनकी प्रणाली थी ।
.
उस प्रणाली ने सबके लिये मुक्ति महल का द्वार खोल दिया था अर्थात् उनकी प्रणाली को अपनाकर सभी मुक्ति को प्राप्त होने लगे थे ।
.
विशेष कथा – विष्णु स्वामीजी की संप्रदाय के आदि आचार्य शिवजी हैं । शिवजी ने प्रथम प्रेमानन्द मुनि को उपदेश किया था । इसीसे यह शिव संप्रदाय कहा जाता है । प्रेमानन्द मुनि “विष्णु कान्चीपुरी” में हुये हैं ।
.
आप श्री वरदराज के मन्दिर में सेवा पूजा किया करते थे । भगवान् वरदराज ने प्रेमानन्द मुनि पर प्रसन्न होकर शिवजी को कहा – आप प्रेमानन्द मुनि को उपदेश करो । शिवजी ने प्रेमानन्द मुनि को मंत्र उपदेश करके सात वर्ष के बालक रूप में भगवान् का ध्यान बताया था । आगे चलकर इस संप्रदाय का विष्णु स्वामी ने प्रचार किया था । इससे विष्णु स्वामी संप्रदाय नाम से प्रसिद्ध हुआ है ।
.
धर्मराज युधिष्ठिर के संवत २५०० व्यतीत होने पर अर्थात् विक्रम से ६०० वर्ष पूर्व द्रविड़ देश के एक क्षत्रिय राजा के मंत्री भक्त ब्राह्मण ने भगवान् की बड़ी आराधना करके विष्णु स्वामी को पुत्र रूप में प्राप्त किया । कोई कोई इनका समय विक्रम के बाद भी मानते हैं ।
.
बचपन में ही इनमें अलौकिक गुण प्रकट हो गये थे । विद्याध्यनन के पश्चात् इनको भगवद् दर्शन की उत्कंठा हुई और भगवद् वियोग में इनने अन्न-जल त्याग दिया । सातवें दिन अपने शरीर को विरहाग्नि में जलाने लगे तब भगवान् ने दर्शन देकर तथा उपदेश देकर इनको कृतार्थ कर दिया था ।
.
आपने जैसा दर्शन किया था वैसी ही मूर्ति बनवाकर उसकी सेवा-पूजा करने लगे । ‘श्रीकृष्ण तवास्मि’ मंत्र का जप करते थे । एक समय आपने शिष्यों सहित नीलाचल की यात्रा की थी । जगन्नाथजी के मन्दिर में अरुण खंभ के पास खड़े थे । उसी दिन फूल डोल का उत्सव था । अति भीड़ के कारण आप शिष्यों के सहित मन्दिर के पीछे जा बैठे थे । तब भगवान् ने अपने मन्दिर का द्वार पीछे की ओर कर दिया ।
.
इससे वंहा और अधिक भीड़ होने लगी । तब आप मन्दिर के दक्षिण की ओर जा बैठे । उधर भी भगवान् ने द्वार बना दिया । यह देखकर विष्णु स्वामी पर सब की अधिक श्रद्धा बढ़ी । विष्णु स्वामी की भक्ति से मन्दिर के चार द्वार होने की कथा वहां अब भी प्रसिद्ध है । वृद्धावस्था होने पर शास्त्र मर्यादा के रक्षण के लिये आपने त्रिदण्ड संन्यास ग्रहण किया था और अन्त में भगवत् को प्राप्त हुये थे ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें