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*ज्यों रचिया त्यों होइगा, काहे को सिर लेह ।*
*साहिब ऊपरि राखिये, देख तमाशा येह ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विश्वास का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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सभी 'राम की इच्छा’ है ।"
एक भक्त - राम की इच्छा, यह कैसी कहावत है ?
श्रीरामकृष्ण - किसी गाँव में एक जुलाहा रहता था । वह बड़ा धर्मात्मा था । सब को उस पर विश्वास था और सब लोग उसे प्यार भी करते थे । जुलाहा बाजार में कपड़े बेचा करता था । जब खरीददार दाम पूछते तो वह कहता, 'राम की इच्छा से सूत का दाम हुआ एक रुपया, मेहनत चार आने की, राम की इच्छा से मुनाफा दो आने, और कुल कीमत राम की इच्छा से एक रुपया छः आने ।’
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लोगों का उस पर इतना विश्वास था कि उसी समय वे दाम देकर कपड़ा ले लेते थे । वह जुलाहा बड़ा भक्त था, रात को भोजन करके बड़ी देर तक चण्डी-मण्डप में बैठा ईश्वर-चिन्तन किया करता था । उनके नाम और गुणों का कीर्तन भी वहीं करता था । एक दिन बड़ी रात हो गयी, फिर भी उसकी आँख न लगी, वह बैठा हुआ था, कभी कभी तम्बाकू पीता था ।
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उसी समय उस रास्ते से डाकुओं का एक दल डाका डालने के लिए जा रहा था । "उनमें कुलियों की कमी थी । उसे देखकर उन्होंने कहा, अबे, हमारे साथ चल । यह कहकर उसका हाथ पकड़ लिया और उसे ले चले । फिर एक गृहस्थ के यहाँ उन लोगों ने डाका डाला । कुछ चीजें जुलाहे पर लाद दीं, इतने में ही पुलिस आ गयी !
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डाकू भाग गये, सिर्फ जुलाहा सिर पर गट्ठर लिये हुए पकड़ा गया । उस रात को उसे हवालात में रखा । दूसरे दिन मैजिस्ट्रेट साहब के कोर्ट में वह पेश किया गया । गाँव के आदमी मामला सुनकर कोर्ट में हाजिर हुए । उन सब लोगों ने कहा, हुजूर ! यह आदमी कभी डाका नहीं डाल सकता । साहब ने तब जुलाहे से पूछा, 'क्यों जी, तुम्हें क्या हुआ है ? कहो ।'
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"जुलाहे ने कहा, 'हुजूर ! राम की इच्छा से मैंने रात को रोटी खायी । इसके बाद राम की इच्छा से मैं चण्डी-मण्डप में बैठा हुआ था, राम की इच्छा से रात बहुत हो गयी । मैं राम की इच्छा से उनकी चिन्ता कर रहा था और उनके भजन गा रहा था । उसी समय राम की इच्छा से डाकुओं का एक दल उस रास्ते से आ निकला ।
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राम की इच्छा वे लोग मुझे पकड़कर घसीट ले गये । राम की इच्छा से उन लोगों ने एक गृहस्थ के घर डाका डाला । राम की इच्छा से मेरे सिर पर गट्ठर लाद दिया । इतने में ही राम की इच्छा से पुलिस आ गयी । राम की इच्छा से मैं पकड़ा गया, तब मुझे राम की इच्छा से हवालात में पुलिस ने बन्द कर रखा । आज सुबह को राम की इच्छा से वह हुजूर के पास ले आयी है ।'
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"उसे धर्मात्मा देखकर साहब ने जुलाहे को छोड़ देने की आज्ञा दी । जुलाहे ने रास्ते में अपने मित्रों से कहा, 'राम की इच्छा से मैं छोड़ दिया गया ।’ संसार करना, संन्यास, यह भी सब राम की इच्छा से होता है, इसीलिए उन पर सब भार छोड़कर संसार का काम करना चाहिए ।
"नहीं तो और कुछ करो भी, तो क्या करोगे ?
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"किसी क्लर्क को जेल हो गयी थी । मियाद पूरी हो जाने पर वह जेल से निकाल दिया गया । अब बताओ, वह जेल से निकलकर मारे आनन्द के नाचता रहे या फिर क्लर्की करे ?
“संसारी अगर जीवन्मुक्त हो जाय तो वह अनायास ही संसार में रह सकता है; जिसे ज्ञान की प्राप्ति हो गयी है, उसके लिए यहाँ-वहाँ नहीं है, उसके लिए सब बराबर है । जिसके मन में वहाँ है, उसके मन में यहाँ भी है ।
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"जब मैंने पहले-पहल बगीचे में केशव सेन को देखा, तब कहा, इसकी पूँछ गिर गयी है ! सभा भर के आदमी हँस पड़े । केशव ने कहा, 'तुम लोग हँसो मत; इसका कोई अर्थ है, इनसे पूछता हूँ । मैंने कहा ‘जब तक मेंढ़क के बच्चे की पूँछ नहीं गिर जाती, तब तक उसे पानी में ही रहना पड़ता है; वह किनारे से चढ़कर सूखी जमीन में विचर नहीं सकता; ज्योंही उसकी पूँछ गिर जाती है त्योंही वह फिर उछल-कूदकर जमीन पर आ जाता है ।
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तब वह पानी में भी रह सकता है और जमीन पर भी । उसी तरह आदमी की जब तक अविद्या की पूँछ नहीं गिर जाती, तब तक वह संसार रूपी जल में ही पड़ा रहता है । अविद्यारूपी पूँछ के गिर जाने पर - ज्ञान होने पर ही मुक्त भाव से मनुष्य विचरण कर सकता है और इच्छा होने पर संसार में भी रह सकता है ।’"
(क्रमशः)

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