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🙏🇮🇳 *卐सत्यराम सा卐* 🇮🇳🙏
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*दादू तन मन लाइ कर, सेवा दृढ़ कर लेइ ।*
*ऐसा समर्थ राम है, जे मांगै सो देइ ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ समर्थता का अंग)*
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*सौजन्य ~ #भक्तमाल*, *रचनाकार ~ स्वामी राघवदास जी,*
*टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान*
*साभार ~ श्री दादू दयालु महासभा*, *साभार विद्युत संस्करण ~ रमा लाठ*
*मार्गदर्शक ~ @Mahamandleshwar Purushotam Swami*
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*नामदेवजी की पद्य टीका*
*वाम सु देव भगत्त बड़ो हरि,*
*तासु सुता पति हीन भई है ।*
*संवत बारह मांहि भई तब,*
*तात हि ठाकुर सेव दिई है ॥*
*तोर मनोरथ सिद्ध करैं प्रभु,*
*प्रीति लगाय रहो तम१ ईहै२ ।*
*सेव करी अति वेगि भये खुश,*
*भोग चहै अपनाय लिई है ॥२१४॥*
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दक्षिण हैदराबाद के नरसी ब्राह्मणी ग्राम में एक भगवद्भक्त छीपी कुल में दामा सेठ नामक युवक थे । इनकी पत्नी का नाम गोणाई था । गोणाई महान् हरि भक्त वामदेव की पुत्री थी ।
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यह बारह वर्ष की ही बाल विधवा हो गई थी और पिता के पास ही रहती थी ।
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पिता ने ही इसको ठाकुर सेवा देकर कहा था – तेरे मनोरथों को भगवान् सिद्ध करेंगे, तुम प्रीति लगाकर भगवान् का ही भजन करो । इस२ जीवन में यही परम-उत्तम है ।
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गोणाई ने अति प्रीति पूर्वक भगवान् की भक्ति की । उससे शीघ्र ही भगवान् उस पर प्रसन्न हो गये । उसकी इच्छा थी मुझे भगवान् से भोग सुख प्राप्त हो । भगवान् ने उसे अपना कर उसकी इच्छा पूर्ण की ।
(क्रमशः)
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