बुधवार, 20 अप्रैल 2022

*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ६१/६४*

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*श्रद्धेय श्री महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी बाबाजी के आशीर्वाद से*
*वाणी-अर्थ सौजन्य ~ Premsakhi Goswami*
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*२३. पिव पिछांणन कौ अंग ~ ६१/६४*
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अजन्मा जन्म रहितस्यं, अकरता क्रित भाषणं ।
अबिगतं अनन्तं रांमं, जगजीवन तस्य दरसणं४ ॥६१॥
{४. अजन्मा.....दरसणं=(संस्कृत रूपान्तर)}
अजन्मनो निरुत्पत्तेरकर्तुः कृतकर्मणः ।
अगतान्न्तरूपस्य सुखं तत्त्वस्य दर्शनम् ॥६१॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि जो जन्मरहित है वह अजन्मा पुरुष परमात्मा है । जो न करता हुआ भी सब कुछ का करता है । जिसकी कृपा द्वारा न जाना हुआ भी वह जाना जाता है । ऐसे तत्व रुप परमात्मा के दर्शन अवश्य ही सुखकर हैं ।
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कहि जगजीवन भागवत५, सोई कहिये बेद ।
भाव भगति सौं नांम भजि, कोई जन पावै भेद ॥६२ ॥
(५.भागवत=इस नाम का पुराण ग्रन्थ)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि वेद, भागवत सब वह ही है जहां भक्ति भाव से प्रभु स्मरण कर प्रभु को जाना जाये ।
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कहि जगजीवन साध कै, पारस पिव को नांम ।
परसि लौह कंचन करै, अंग बिराजै रांम ॥६३॥
संतजगजीवन जी कहते हैं कि साधु जन के लिये प्रभु या मालिक का स्मरण पारस की भांति है । यह स्मरण रुपी पारस ही उन्हें स्वर्ण से कंचन करता है । और उनकी देह में राम विराजते हैं ।
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कहि जगजीवन रांमजी, नौ खंड प्रिथिवी ताप६ ।
दसवैं खंड सुख स्वाति रस७, जहँ हरि आपै आप ॥६४॥
(६. ताप=दुःखमय) (७. स्वाति रस=स्वाति नामक १५वें नक्षत्र का जल, जिसे 'अमृत' कहा जाता है)
संतजगजीवन जी कहते हैं कि इस नो खण्ड पृथ्वी में दुख ही दुख है । और दसवां भाग वह कहा गया है जहाँ सीप की भांति यह पृथ्वी स्वाति नक्षत्र की बूंद, जो कि परमात्मा की उपस्थिति है, को पाकर धन्य होती है ।
(क्रमशः)

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