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*आदि अन्त गाहन किया, माया ब्रह्म विचार ।*
*जहँ का तहँ ले दे धर्या, दादू देत न बार ॥*
*(#श्रीदादूवाणी ~ विचार का अंग)*
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साभार ~ श्री महेन्द्रनाथ गुप्त(बंगाली), कवि श्री पं. सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’(हिंदी अनुवाद)
साभार विद्युत् संस्करण ~ रमा लाठ
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*(७)मातृसेवा और श्रीरामकृष्ण । हाजरा महाशय*
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श्रीरामकृष्ण के कमरे के पूर्ववाले बरामदे में हाजरा महाशय बैठकर जप करते हैं । उम्र ४६-४७ होगी । श्रीरामकृष्ण के देश के आदमी हैं । बहुत दिनों से वैराग्य है । बाहर बाहर घूमते हैं, कभी घर जाकर रहते हैं । घर में कुछ जमीन आदि है । उसी से उनकी स्त्री और लड़के बच्चे पलते हैं । परन्तु एक हजार रुपये के लगभग ऋण है । इसके लिए हाजरा महाशय को बड़ी चिन्ता रहती है कि कब ऋण का शोध हो । इसके लिए वे सदा प्रयत्नशील भी रहते हैं ।
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श्रीयुत हाजरा महाशय कलकत्ता भी आया-जाया करते हैं । वहाँ ठनठनिया के ईशानचन्द्र मुखोपाध्याय महाशय उनकी बड़ी खातिर करते हैं और साधु की तरह सेवा भी करते हैं । श्रीरामकृष्ण ने उन्हें यत्नपूर्वक अपने पास रखा है, उनके कपड़े फट जाते हैं तो भक्तों से कहकर बनवा देते हैं । सदा उनकी खबर लेते हैं और सदा उनसे ईश्वरी प्रसंग किया करते हैं । हाजरा महाशय बड़े तार्किक हैं । प्राय: बातचीत करते हुए तर्क की तरंग में बहकर इधर से उधर हो जाते हैं । बरामदे में अपने आसन पर सदा माला लिये हुए जप किया करते हैं ।
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हाजरा महाशय की माता के बीमार पड़ने का हाल आया है । रामलाल के आते समय उन्होंने (हाजरा की माँ ने) उनका हाथ पकड़कर बहुत तरह से कहा था, 'अपने चाचा(श्रीरामकृष्ण) से मेरी विनय सुनाकर कहना वे प्रताप(हाजरा महाशय) को किसी तरह घर भेज दें; एक बार मैं देख लूँ ।'
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श्रीरामकृष्ण ने हाजरा महाशय से कहा था, 'एक बार घर जाकर अपनी माँ के दर्शन कर आओ । उन्होंने रामलाल से बहुत समझाकर कहा है, माँ को कष्ट देकर भी कभी ईश्वर को पुकारना हो सकता है ? मुलाकात करके चले आना ।
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भक्तों के उठ जाने पर महिमाचरण हाजरा को साथ लेकर श्रीरामकृष्ण के पास आये । मास्टर भी हैं ।
महिमाचरण - (श्रीरामकृष्ण से, सहास्य) - महाराज, आपसे एक निवेदन है, आपने हाजरा को घर जाने के लिए क्यों कहा ? फिर से संसार में जाने की उसकी इच्छा नहीं है ।
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श्रीरामकृष्ण - उसकी माँ रामलाल के पास बहुत रोयी है । इसीलिए मैंने कहा, तीन ही दिन के लिए चले जाओ, एक बार मिलकर फिर चले आना । माता को कष्ट देकर क्या कभी ईश्वर की साधना होती है ? मैं वृन्दावन में रहता था, तब माँ की याद आयी, सोचा, माँ रोयेंगी, बस, सेजोबाबू के साथ यहाँ चला आया । संसार में जाते हुए ज्ञानी को क्या डर है ?
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महिमाचरण - (सहास्य) - महाराज, हाजरा को ज्ञान जब हो तब न ?
श्रीरामकृष्ण – (सहास्य ) - हाजरा को सब कुछ हो गया है । संसार में थोड़ा सा मन है, कारण, बच्चे आदि हैं और कुछ ऋण है । ‘मामी की सब बीमारी अच्छी हो गयी है, एक नासूर रोग है !' (महिमाचरण आदि सब हँसते हैं ।)
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महिमाचरण - कहाँ ज्ञान हुआ महाराज ?
श्रीरामकृष्ण - (हँसकर) - नहीं जी, तुम नहीं जानते हो । सब लोग कहते हैं हाजरा एक विशेष व्यक्ति हैं, रासमणि की ठाकुरबाड़ी में रहते हैं । सब लोग हाजरा का ही नाम लेते हैं, यहाँ का (अपने को लक्ष्य कर) नाम कौन लेता है ?
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हाजरा - आप निरुपम हैं, आपकी उपमा नहीं है, इसीलिए आपको कोई समझ नहीं पाता ।
श्रीरामकृष्ण - वही तो, निरुपम से कोई काम भी नहीं निकलता, अतएव यहाँ का नाम कोई क्यों लेने लगा ?
महिमा - महाराज, वह क्या जाने ? आप जैसा उपदेश देंगे, वह वैसा ही करेगा ।
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श्रीरामकृष्ण – नहीं, तुम चाहे उससे पूछ देखो, उसने मुझसे कहा है, तुम्हारे साथ मेरा कोई लेना देना नहीं है ।
महिमा - तर्क बहुत करता है ।
श्रीरामकृष्ण - वह कभी कभी मुझे शिक्षा देता है । (सब हँसते हैं ।) जब तर्क करता है तब कभी मैं गाली दे बैठता हूँ । तर्क के बाद कभी मसहरी के भीतर लेटा हुआ रहता हूँ, फिर यह सोचकर कि मैंने कुछ कह तो नहीं डाला, निकल आता हूँ, हाजरा को प्रणाम कर जाता हूँ, तब चित्त स्थिर होता है ।
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श्रीरामकृष्ण – (हाजरा से) - तुम शुद्धात्मा को ईश्वर क्यों कहते हो ? शुद्धात्मा निष्क्रिय है, तीनों अवस्थाओं का साक्षीस्वरूप है । जब हम सृष्टि, स्थिति और प्रलय के कार्यों की चिन्ता करते हैं, तभी ईश्वर को मानते हैं । शुद्धात्मा उसी तरह है जैसे दूर पर पड़ा हुआ चुम्बक पत्थर; सुई हिल रही है, परन्तु चुम्बक पत्थर चुपचाप पड़ा हुआ है - निष्क्रिय है ।
(क्रमशः)

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