🌷🙏🇮🇳 *#daduji* 🇮🇳🙏🌷
🌷🙏 *卐 सत्यराम सा 卐* 🙏🌷
🦚 *#श्रीदादूवाणी०भावार्थदीपिका* 🦚
https://www.facebook.com/DADUVANI
भाष्यकार : ब्रह्मलीन महामण्डलेश्वर स्वामीआत्माराम जी महाराज, व्याकरण वेदांताचार्य, श्रीदादू द्वारा बगड़, झुंझुनूं ।
साभार : महामण्डलेश्वर स्वामीअर्जुनदास जी महाराज, बगड़, झुंझुनूं ।
*#हस्तलिखित०दादूवाणी* सौजन्य ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
.
*(#श्रीदादूवाणी शब्दस्कन्ध ~ पद #.१८६)*
===============
*१८६. (गुजराती) तर्क चेतावनी । शूलताल*
*मेरा मेरा काहे को कीजे रे, जे कुछ संग न आवे ।*
*अनत करी नें धन धरीला रे, तेंऊ तो रीता जावे ॥टेक॥*
*माया बंधन अंध न चेते रे, मेर मांहिं लपटाया ।*
*ते जाणै हूँ यह बिलासौं, अनत विरोधे खाया ॥१॥*
*आप स्वारथ यह विलूधा रे, आगम मरम न जाणे ।*
*जम कर माथे बाण धरीला, ते तो मन ना आणे ॥२॥*
*मन विचारि सारी ते लीजे, तिल मांहीं तन पड़िबा ।*
*दादू रे तहँ तन ताड़ीजे, जेणें मारग चढ़िबा ॥३॥*
.
भादी० - अस्मिन् संसारे न कोऽपि किंचित् कमपि पदार्थमादायागच्छति तथैव च गच्छति । पुनस्तत्किमर्थं ममत्वभावं जनस्तेषु विदधाति । येऽन्यायेन धनानि गृह्णन्ति, तेऽप्यन्ते रिक्तहस्ताः प्रयान्ति । ये धनमदान्धास्ते मायानिबद्धा व्यर्थमेव ममत्वमादधति । ये च परधनापहारकास्ते परधनानि भुक्त्वा यद्यप्यानन्दं मन्यन्ते परन्तु तत्परिणामं न पश्यन्ति । ते हि स्वार्थसिद्धिपरायणा दण्डहस्तं शिरसि स्थितं करालं कालमपि नावलोकयन्ति । यतोहि ते स्वार्थधियाऽन्धीकृतलोचना भवन्ति । हे जीव ! क्षणभङ्गुरमिदं शरीरमिति विभाव्य प्रभुभक्तिमार्गमवलम्बस्व । साधनेन मनः शरीरञ्च वशीकृत्यात्मानमखण्डब्रह्मस्वरूपाभिन्नं विजानीहि ।
उक्तं हि स्कन्दपुराणे -
तस्यैव हेतोः प्रयतेत कोविदो न लभ्यते यद्धमतामुपर्यधः ।
तल्लभ्यते दुःखवदन्यतः सुखं कालेन सर्वत्र गभीररंहसा ॥
भागवते
अविस्मितं तं परिपूर्णकामं स्वेनैव लाभेन समं प्रशान्तम् ।
विनोपसर्पत्यपरं हि वालिश: श्वलाङ्गुलेनातितितर्ति सिन्धुम् ॥
.
इस संसार में कोई भी प्राणी अपने साथ कोई भी पदार्थ लेकर नहीं आता और न मृत्यु के साथ में ले जाता, किन्तु रीते हाथ आता है और रीते ही चला जाता है । फिर भी प्राणी न जाने क्यों मेरा तेरा भाव करता है? जो अनर्थ के द्वारा धन संग्रह कर लेते हैं, वे भी रीते हाथ ही जाते हैं । फिर भी क्यों अनर्थ करते हैं? वे धन के मद से अन्धे हो रहे हैं और माया से बंधे हुए व्यर्थ ही ममता करते हैं । जो दूसरों को ठग कर धन संग्रह करके उसका उपभोग करके आनन्द मानते हैं, वे भी उसके परिणाम को नहीं जानते । वे स्वार्थसिद्धि में लगे हुए अपने शिर पर डण्डा लेकर खड़े हुए विकराल काल को भी नहीं देखते ।
.
हे जीव ! इस शरीर को क्षणभंगुर मान कर प्रभु की भक्ति करो और साधन द्वारा अपने शरीर और मन को वश में करके अपने आपको अखण्ड आत्मस्वरूप जानो ।
.
स्कन्दपुराण में कहा है कि –
दुनियाँ के लोग सुखों की इच्छा करते हैं और उन सुखों के लिये ही प्रयत्न करते हैं । किन्तु बुद्धिमान् मनुष्य को चाहिये कि प्रयत्न उसी के लिये करें जो अपने आप न मिले । प्राणी ने जो भले बुरे कर्म किये हैं, उनका फल गुप्त काल-चक्र में पड़ा है । इस अनन्त काल-चक्र में सुख और दुःख अपने आप आते और जाते रहते हैं । अतः उनके लिये क्या यत्न करना? यत्न तो भगवान् की प्राप्ति के लिये करना चाहिये ।
.
भागवत में कहा है कि –
हे नाथ ! आपके लिये यह नई बात नहीं है कि आप किसी को भी देखकर विस्मित नहीं होते । आप अपने स्वरूप में सर्वथा परिपूर्ण हैं, सम और शान्त हैं । जो आपको छोड़कर किसी दूसरे की शरण लेता है, वह मूर्ख मानो कुत्ते की पूंछ पकड़कर समुद्र पार करना चाहता है । अतः भगवान् की ही शरण उत्तम है ।
(क्रमशः)

कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें