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🌷🙏 *#श्री०रज्जबवाणी* 🙏🌷
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*कहा कहूँ कुछ वरणि न जाई,*
*अविगति अंतर ज्योति जगाई ।*
*दादू उनको मरम न जानै,*
*आप सुरंगे बैन बजाई ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. ७१)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
अथ राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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*कहा कहूँ कुछ वरणि न जाई,*
*अविगति अंतर ज्योति जगाई ।*
*दादू उनको मरम न जानै,*
*आप सुरंगे बैन बजाई ॥*
(श्री दादूवाणी ~ पद. ७१)
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*श्री रज्जबवाणी पद ~ भाग २*
अथ राग राम गिरी(कली) १, गायन समय प्रातः ३ से ५
टीका ~ संतकवि कविरत्न स्वामी नारायणदास जी महाराज, पुष्कर, राजस्थान ॥
साभार विद्युत संस्करण ~ महन्त रामगोपालदास तपस्वी तपस्वी
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३. ज्ञान मार्ग । त्रिताल
संतो बाट१ बटाऊ२ मांही, सो आपन समझै नांही ।
बिरला गुरु मुख पावे, सो फिर बहुरि न आवे ॥टेक॥
मति मार्ग में गवना, तंह नहीं तीनों भवना ।
है ऊँकार अकेला, सो आप आप में खेला ॥१॥
सेरी३ समझ सयाना, यहु आतम अगम पयाना ।
यूं चलि चौथे आवे, सो परम पुरुष को पावे ॥२॥
तहँ पंथ पथिक पति एकै, इहिं४ रामिबे५ रंग विवेकै६ ।
जन रज्जब रह७ पाई, सो आसन करे न भाई ॥३॥३॥
✦ ज्ञान मार्ग का परिचय दे रहे हैं - हे संतो ! प्रभु प्राप्ति का ज्ञान रूप पथ१ पथिक२ के भीतर ही है किन्तु उसे जीव अपने आप नहीं समझ पाता, कोई बिरला साधक ही गुरु मुख से श्रवण कर के समझ पाता है । समझने के पश्चात वह पुनः जन्म लेकर संसार में नहीं आता ।
✦ उस ज्ञान मार्ग में बुद्धि से ही गमन होता है और उस मार्ग में स्वर्ग, मर्त्य, पाताल ये तीनों भुवन नहीं आते । उसमें अद्वैत ब्रह्म के नाम ओंकार का चिंतन ही सहायक होता है और ब्रह्म प्राप्ति पर वह साधक स्वयं ही अपने स्वरुप ब्रह्म में आनंद अनुभव रूप खेल खेलता है ।
✦ इस ज्ञान मार्ग३ को समझ कर यह आत्मा अगम ब्रह्म को प्राप्त करने के लिये प्रस्थान करता है । इस प्रकार चलकर तुरीयावस्था रूप चतुर्थ स्थान पर आता है तब वह परम पुरुष ब्रह्म को प्राप्त करता है ।
✦ उस ब्रह्म प्राप्ति रूप अवस्था में ज्ञान रूप पथ, साधक रूप पथिक और स्वामी ब्रह्म तीनों एक रूप हो जाते हैं । इस४ ब्रह्म में रमण५ करने के रंग-ढंग का यही विचार६ है । जो इस ज्ञान मार्ग७ को प्राप्त कर लेता है, वह भाई शरीर को व्यथित करने वाले आसन नहीं करता, वृत्ति को ही ब्रह्माकर रखता है ।
(क्रमशः)
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